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Avnish Jain | Jul 28, 2021 | Editorial
बेकाबू ईंधन
इस वक्त महंगाई पर काबू पाना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। उस पर पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और प्राकृतिक गैस की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अब लगभग पूरे देश में पेट्रोल की कीमत सौ रुपए से उफपर पहुंच गई है। डीजल भी उसी के नक्शे-कदम पर चल रहा है। कुछ दिनों पहले ही रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत में भारी बढ़ोतरी की गई थी। स्वाभाविक ही इसका असर आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ रहा है। कोरोना काल में बाजार, कारोबार, उद्योग-ध्ंधे बंद होने की वजह से लाखों लोगों के रोजगार छिन चुके हैं, लाखों लोगों की वेतन वाली नौकरियां जा चुकी हैं, निजी संस्थानों में कर्मचारियों के वेतन में भारी कटौती की गई है, जो फेरी लगाने, मिस्त्रीगिरी, इधर से उधर सामान पहुंचाने वगैरह का काम किया करते थे, उनके उद्योग-ध्ंधे में भारी गिरावट आई है। ऐसे में देश के हर वर्ग के सामने अपने दैनिक खर्च में संतुलन बिठाना मुश्किल हो रहा है। तिस पर पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस आदि की उफपर चढ़ती कीमतें उनकी चुनौतियां और बढ़ा रही हैं।
ईंध्नन की कीमतें बढ़ने से रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली दूसरी वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ती हैं। उनकी उत्पादन, लागत, ढुलाई आदि पर खर्च बढ़ जाता है जिसे अंतिम रूप से आम उपभोक्ता को ही वहन करना पड़ता है। लोगों की कमाई लगातार घटती गई है और उनके रोज के यातायात और खाने-पीने पर खर्च बढ़ गए हैं। इसके अलावा बच्चों के स्कूल की पफीस, उनकी पढ़ाई-लिखाई से जुड़े दूसरे खर्चों को संभालना मुश्किल है। स्थिति यह है कि इस वक्त महंगाई अपने चरम पर है। उसे काबू में करने के तमाम प्रयास विपफल हो चुके हैं।
बैंकों की ब्याज दरें निम्नतम स्तर पर रखी गई है, ताकि बाजार में कुछ गति आए, पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ। इसलिए कि लोगों की क्रयशक्ति कापफी कम हो गई है और उन्हें जब रोजमर्रा के खर्चे पूरा करने में ही हाथ रोक कर चलना पड़ रहा है तो दूसरे टिकाउ सामान और विलासिता की चीजों पर उनसे खर्च की उम्मीद ही भला कैसे की जा सकती है। स्वाभाविक ही महंगाई की सबसे बुरी मार निर्धन और औसत आय वाले परिवारों पर पडती है। यह सब जानते हुए भी सरकार की तरफ से तेल की कीमतों पर लगाम लगाने के व्यावहारिक उपाय नजर नहीं आ रहे।
यह ठीक है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है, तो उसका असर खुदरा कीमतों पर भी पड़ती है। मगर यह कोई पहला मौका नहीं है, जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही है। पिछले कार्यकाल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर इस तर्क के साथ सीधे अतिरिक्त कर लगाए थे कि उस राशि का उपयोग तेल संकट के समय में किया जाएगा। उस राशि से तेल पूल बनाने की भी योजना थी। उस कर में लगातार बढ़ोतरी हुई है, पर तेल संकट से उबरने की दिशा में एक भी उपाय नजर नहीं आता। कुछ राज्य सरकारों ने तेल पर अपने करों में कटौती की है, मगर उसका भी कोई उल्लेखनीय नतीजा नहीं निकला है। जब तक केंद्र सरकार पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और प्राकृतिक गैस की कीमतों को संतुलित करने के कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाती, तब तक आम लोगों की मुश्किलें शायद ही कम हों।