+91-9414076426
Avnish Jain | Jan 30, 2023 | Editorial
वीरो की याद
भारत में गुलामी के प्रतीकों को मिटाने का क्रम निरंतर जारी है और इसी क्रम में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के 21 द्वीपों का नाम परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखा गया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पराक्रम दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की। उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र्र बोस द्वीप पर बनने वाले नेताजी को समर्पित राष्ट्रीय स्मारक के माॅडल का भी अनावरण किया, यह द्वीप पहले राॅस द्वीप समूह के नाम से जाना जाता था। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संदेश के साथ केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया है। परमवीर चक्र विजेताओं को एक साथ एक स्थान मिलना सराहनीय है। देश के विरल वीर जवानों की स्मृतियां देश की मिट्ट्टी में यहां-वहां बिखरी हुई हैं। अब उनके स्मारक एक जगह होने से उन्हें याद करने या उनका नाम लेने में भी सुविधा हो जाएगी।
देश के ऐसे परमवीरों के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसा महानायक कमांडर कहां मिलेगा? नेताजी बोस के साहस, पराक्रम व उद्यम का कोई मुकाबला नहीं है। परमवीर चक्र विजेता और नेताजी सुभाष चंद्र बोस, दोनों ही एक-दूसरे के सम्मान में चार चांद लगाएंगे। अंडमान और निकोबार में एक ऐसा प्रेरक वीर क्षेत्र बन रहा है, जो पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचेगा, इस केंद्रशासित प्रदेश से बाकी देश को ज्यादा स्नेह और मजबूती से जोड़ेगा। वाकई, सरकार का यह कदम हमारे नायकों के प्रति एक चिरस्थायी श्रद्धांजलि होगी, जिनमें से कई ने देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए मोर्चे पर ही सर्वोच्च बलिदान दे दिया था। नेताजी को समर्पित राष्ट्रीय स्मारक में एक संग्रहालय, केबल कार रोपवे, लेजर ऐंड साउंड शो, विरासत मार्ग और एक रेस्ट्रो लाउंज के अलावा बच्चों के लिए थीम-आधारित मनोरंजन पार्क भी होगा। मतलब स्मारक के प्रति आकर्षण बढ़ाने के उपाय या साधन उसे नीरस होने से बचाएंगे। अक्सर यह देखा गया है कि भौतिकता की आपाधपी में ऐसे स्मारक आकर्षण के अभाव में उपेक्षित हो जाते हैं। अतः बदलते समय के साथ स्मारकों के प्रति लोगों का लगाव-जुड़ाव बढ़ाने के जरूरी इंतजाम भी जरूरी हैं।
देश के लिए कुर्बान होने वाली हस्तियों की यादों को सहेजने के साथ-साथ गुलामी के प्रतीकों को मिटाते चलने की नीति अनिवार्य है। हमारी सरकारों को यह सोचना चाहिए कि ऐसी कोई प्रेरक हस्ती स्थानीय स्तर पर उपेक्षित न रहे। प्रेरणा के अनगिन मंदिर बनाकर युवाओं को भटकने से रोकना होगा। जगह-जगह केवल बाजार-माॅल खोलना विकास का एकमात्रा रास्ता नहीं है। शहीदों और महापुरुषों के कर्म, भाव, कर्तव्य से प्रेरित होने की जरूरत है। केवल स्मारक खडे़ कर देने से कुछ नहीं होगा, स्मारकों से शिक्षा और शोध केंद्रों को जोड़ना होगा। पूरी व्यवस्था को चंद महापुरुषों पर ही केंद्रित नहीं हो जाना चाहिए। जैसे हमने सुभाषचंद्र बोस के साथ 21 परमवीर चक्र विजेताओं को याद किया है, वैसे ही हमें हर क्षेत्र के समर्पित महानायकों के स्मारकों को संजोने के उपक्रम देश में जगह-जगह करने चाहिए। समाजसेवा के क्षेत्रा में भी अनेक मार्गदर्शक हुए हैं, उन्हें भी एक जगह संजोया जाए। ठीक इसी तरह से देश के दिग्गज वैज्ञानिकों के नाम-काम-पहचान को कहीं एक जगह समेट लाना आकर्षक हो सकता है। अंडमान और निकोबार में वीरों की यादों को संजोने का यह तरीका सराहनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है।