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Avnish Jain | Jun 14, 2023 | Editorial
भारतीय रेल को अंर्तराष्ट्रीय स्तर का बनाने का दावा
हकीकत से दूर
ओडीशा के बालासोर में हुआ रेल हादसा यह बताने के लिए काफी है कि भारतीय रेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने का दावा चाहे कितना भी किया जाए, लेकिन यह सपना अभी हकीकत से दूर है। एक साथ तीन रेलगाड़ियों का आपस में टकराना इस बात की पुष्टि है कि या तो रेलगाड़ियों के परिचालन के प्रबंधन में घनघोर लापरवाही बरती गई या फिर रखरखाव और सुरक्षा के इंतजामों में व्यापक खामी है।
खबरों के मुताबिक यशवंतपुर से हावड़ा जा रही दुरंतो एक्सपेस के कुछ डिब्बे पटरी से उतर गए और विपरीत दिशा से आ रहे कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकरा गए। इसके बाद दूसरी रेलगाड़ी की कई बोगियां भी पटरी से उतर गई और वहीं खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। इस तरह एक साथ तीन रेलगाड़ियों की टक्कर हो गई और सिपर्फ इतने से ही हादसे की भयावता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस दुर्घटना में दो सौ पिचहत्तर लोगों की जान चली गई और ग्यारह सौ पिचहत्तर लोग घायल हो गए। सवाल है कि जिस दौर में समूची रेल व्यवस्था को आधुनिकतम स्वरूप देने की बात की जा रही हो, उसके बारे में इस घटना के बाद क्या राय बनेगी? इस हादसे के बाद स्वाभाविक ही इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि चलती ट्रेन को सामने से आ रही किसी ट्रेन से टकराने से रोकने के लिए जिस ‘कवच’ नाम की व्यवस्था के इस्तेमाल की बात हो रही थी, क्या उसका दायरा और उसकी उपयोगिता अभी सीमित है? हालांकि इस घटना के बारे में आई खबरों में बताया गया कि एक रेलगाड़ी के डिब्बे पटरी से उतर गए और इस वजह से हादसा हुआ।
लेकिन क्या दुर्घटना वाले मार्ग पर ‘कवच’ की व्यवस्था थी? इसके समांतर इस बात की पड़ताल करने की जरूरत है कि ट्रेन के बेपटरी होने का क्या कारण है? क्या पटरियों में पहले से कोई खामी थी, उससे कोई छेड़छाड़ की गई थी या फिर ट्रेन के परिचालन में कोई ऐसी चूक या लापरवाही हुई, जिसकी वजह से डिब्बे पटरी से उतरे। वजह चाहे जो हो, लेकिन सच यह है कि ट्रेन के सफर को सुरक्षित मान कर अपने-अपने घर या किसी गंतव्य के लिए चले बहुत सारे लोगों की जान चली गई या वे बुरी तरह हताहत हुए। सवाल है कि क्या इस चूक के लिए किसी की जिम्मेदारी तय की जाएगी?
दरअसल, पहले हुए इसी तरह के हादसों के मद्देनजर ऐसे इंतजाम किए जाने की जरूरत महसूस की गई थी कि अगर कभी ट्रेनों में आमने-सामने टक्कर की स्थिति बने तो ‘कवच’ की मदद से उससे बचा जा सके। ‘कवच’ का पूर्व परीक्षण भी हो चुका है। लेकिन अगर ताजा रेल दुर्घटना के बारे में शुरुआती कारणों को ध्यान में रखें तो ऐसा लगता है कि बचाव के इंतजामों पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।हाल के दिनों में रेलयात्रा को बेहतर करने के क्रम में इस बात पर भी ज्यादा जोर दिया जा रहा है कि रेलगाड़ियों की रफ्तार और ज्यादा बढ़ाई जाए।
सवाल है कि तेज रफ्तार से चलने वाली गाड़ियों के लिए क्या रेलगाड़ियों और पटरियों की गुणवत्ता और उनके रखरखाव के साथ-साथ निर्बाध रास्ते को लेकर भी क्या उसी अनुपात में काम किए गए हैं, ताकि लोगों की रेल यात्रा को पूरी तरह सुरक्षित बनाया जा सके? रेलवे में संरक्षा और सुरक्षा कर्मियों के कितने पद रिक्त हैं?
बालासोर हादसे से यह साबित होता है कि यात्रा के बढ़ते खर्चे के बीच हर कुछ दिनों बाद सरकार की ओर से रेलगाड़ियों में सुविधाएं और सुरक्षा के साथ-साथ उसके सुरक्षित परिचालन को लेकर दिए जाने वाले आश्वासनों के बरक्स सच्चाई संतोषजनक नहीं है।