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Avnish Jain | Dec 15, 2022 | Editorial
भारतीय जवाब
दौर कोई भी रहा हो, भारत पर सवाल उठाने वाले बहुत रहे हैं। विश्व मंचों पर भारत की बढ़ती जिम्मेदारी से चिढ़कर ही यह सवाल उठाया गया कि भारत में लोकतंत्र और बोलने की आजादी का क्या हाल है? इस सवाल का बहुत ही माकूल जवाब संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी राजदूत कंबोज ने दिया है। उन्होंने दोटूक कहा कि कोई भी भारत को यह सिखाने की कोशश न करे कि लोकतंत्र को लेकर उसे क्या करना चाहिए? लोकतंत्र को कैसे चलाया जाता है, कोई हमें न सिखाए। इसमें कई लोगों को अहंकार दिखेगा, लेकिन वास्तव में यह अपने देश का स्वाभिमान है। जी 20 में मिली जिम्मेदारी हो या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता, दोनों जगह भारत के नाम की गूंज है। विगत दशकों में किसी भी देश ने ऐसी अध्यक्षता को इतनी गंभीरता से नहीं लिया है। चूंकि भारत अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों को गंभीरता से ले, तो प्रतिकूल तत्वों की पीड़ा को समझा जा सकता है। भारत-विरोधियों को यह लग रहा है कि भारत वैश्विक मंचों पर कोई बड़ा या सकारात्मक बदलाव न कर दे। अतः भारत की आलोचना की स्वाभाविकता को समझदारी की पूरी रोशनी में समझना चाहिए।
इतना तो तय है कि भारत ने जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाली है, तो वह दहशतगर्दी से मुकाबला करने और बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर खास तवज्जो देगा। चंद देशों के वर्चस्व को भारत पहले भी चुनौती देता रहा है। हालांकि सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता के लिए भारत के पास केवल महीने भर का समय है, तब भी कुछ देशों की चिंता समझी जा सकती है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन को भी चिंता है कि कहीं भारत नाटो देशों में न शामिल हो जाए। चीन नहीं चाहता कि अमेरिका और भारत की नजदीकी बढ़े। पाकिस्तान शुरू से ही आतंकवाद को छिपाने और भारत को हर कमी के लिए दोषी ठहराने की नीति पर चलता रहा है। ऐसे में, भारत को विश्व स्तर पर मिल रहे छोटे-छोटे मौकों को भी बड़ा बनाने की हर मुमकिन कोशिश करनी ही चाहिए। भारत की बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच वह दौर भी भुलाए नहीं भूलता, जब भारत में सीमा पर आतंकवाद की समस्या को दुनिया के आला देश गंभीरता से नहीं लेते थे और अक्सर वे आतंक प्रेमी राष्ट्र के बचाव में खड़े हो जाते थे। जब अमेरिका में 9/11 आतंकी हमला हुआ, तब दुनिया ने भारत का भी दर्द समझना शुरू किया।
भारत को अपनी तमाम खूबियों के साथ दुनिया के सामने आना ही चाहिए। किस देश में कैसा लोकतंत्र है, कहां तानाशाही है और कहां आम लोगों को मसल दिया जाता है, यह किसी से छिपा नहीं है। रुचिरा कंबोज ने जोर कहा है कि हमारा देश बदल रहा है और तेजी से सुधर भी हो रहा है। भारत दुनिया की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है, इसे कोरोना काल में सबने देखा है। अब भी भारत में असंख्य कमियां हैं, उसे विकास के डगर पर बहुत दूर जाना है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भारत की खूबियों को भूलकर केवल कमियों पर चर्चा की जाए। आखिर दुनिया में कौन ऐसा देश है, जो कमियों से पूरी तरह आजाद है? रुचिरा कंबोज ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से बिल्कुल सही संदेश दिया है कि हमारी विदेश नीति का केंद्रीय सिद्धान्त मानवता-केंद्रित है और आगे यही रहेगा। बेशक, अब समय आ गया है, जब भारत अपनी ताकत को हर तरह से बढ़ाए और दुनिया में सबसे आदर्श आवाज बन जाए।