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Avnish Jain | Nov 01, 2021 | Editorial
सबके लिए दिवाली
दिवाली नई शुरुआत की, आगे बढ़ने की, जीवन में जड़ जमाए बैठी नकारात्मक वृत्तियों को पीछे छोड़कर भरपूर ताजगी के साथ काम पर जुट जाने का संदेश देती है। यह त्यौहार एक नए मौसम का अहसास भी अपने साथ लाता है यानी बंध-बंधया रुटीन बदलना इसके मिजाज का हिस्सा है। कारोबारी इस दिन बही-खाते बदलते हैं। जिस भी चीज से आपकी रोजी-रोटी निकलती हो, चाहे वे लिखने-पढ़ने के उपकरण हों या खेती से जुड़े साजो-सामान या पिफर पालतू जानवर, इन सबको सजाने-संवारने, सम्मान देने और पूजने की रस्म भी इस त्यौहार के साथ जुड़ी है।
अफसोस कि समय बीतने के साथ उत्सवों की मूल धरणा पीछे छूट गई जबकि उनसे जुड़ी उपरी चीजें सबके सिर पर सवार हो गई। त्यौहारों को भी हमने रेडिमेड बनाकर इन्हें बाजार के भरोसे छोड़ दिया है। इन्हें मनाने के लिए जो भी चीजें हमें चाहिए, उन सबको चकाचक रूप में बाजार हमें उपलब्ध् करा दे रहा है। आज की भागदौड़ की जिंदगी में इससे थोड़ी सुविधा जरूर हो गई है लेकिन इसका असर यह हुआ कि त्यौहार में बराबरी से ज्यादा गैर बराबरी, सुकून से ज्यादा बेचैनी नजर आने लगी है।
दिवाली के बाजार केंद्रित होने का पहला असर यह है कि जिसकी जेब ज्यादा भारी है उसकी दिवाली ज्यादा रोशन और जगमग है लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए प्रकाश पर्व फीका ही रह जाता है। एक होड़ सी मच जाती है कि कौन कितने पटाखे फोड़ रहा है, किसने कितनी महंगी लड़ियां और कंदीलें लगा रखी हैं। पटाखे फोड़ने की सनक ने वायु और ध्वनि प्रदूषण का इतना बड़ा खतरा पैदा किया किया मजबूर होकर सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली-एनसीआर में इनकी बिक्री पर प्रतिबंध् लगाना पड़ा। जाहिर है, राजधानी और इसके आसपास के इलाकों में दिवाली इस बार पहले जितनी हंगामाखेज नहीं होगी।
सच्चाई यह है कि त्यौहार मनाने के तरीके समय के साथ बदलते रहे हैं। पचास साल पहले तक लोगों की कल्पना में भी यह बात नहीं आती होगी कि बिजली के बल्ब दिवाली की रात में मिट्टी के दीयों की जगह ले लेंगे। उसी तरह अब हमें पटाखों के बगैर दिवाली मनाने के बारे में सोचना चाहिए। सच कहें तो इस त्यौहार के स्वरूप को ही बदलने की जरूरत है। दिवाली ऐसा हो जिसमें बाजार लोगों के सिर पर सवारी गांठता न दिखे। लोग कम खर्चे में मिल-जुलकर इसे मना सकें ताकि पर्यावरण बचा रहे और किसी के मन में कटुता और हीनता न पैदा हो। घर पर या कुटीर उद्योगों में बनी सुंदर चीजें हर तरफ अपनी आत्मीय छटा बिखेरती नजर आएं। सरकार और सामाजिक संगठनों को इस दिशा में कुछ करना चाहिए।