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Agency | Aug 13, 2021 | Social Update
चारधाम यात्रा का बेहतर समय है सितम्बर
चारों मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही आधीकारिक रूप से अप्रेल में चार धाम की यात्रा शुरू हो गई थी। इसके बाद यात्रा चली और मानसून के दौरान कई बार यात्रा रोकी गई है। पहाड़ दरकने, सड़क मार्ग खराब होने के कारण यात्रा बाधित हुई है। इस समय भी उत्तराखंड में गम्भीर स्थिति बनी हुई है। नदियां उफान पर हैं और यात्रा मार्ग जगह-जगह खराब हो गया है। इसलिए यात्रा के लिए सितम्बर में जाना ही बेहतर होगा।
यमुनौत्राी
यमुनोत्राी को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है। यहां यमुना का पहाड़ी शैली में बना मनमोहक मंदिर है और मंदिर के पास ही खौलते पानी का ड्डोत है जो तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। यमुनोत्राी पहुंचने के लिए आप दिल्ली से देहरादून या ऋषिकेश तक हवाई यात्रा या रेल यात्रा से पहुंच सकते हैं। यहां से आगे सड़क मार्ग और आखिरी कुछ किलोमीटर पैदल चलकर यमुनोत्राी पहुंच सकते हैं।
गंगोत्राी
चारधाम यात्रा का दूसरा पड़ाव गंगोत्राी है। यमुनोत्राी के दर्शन कर तीर्थ यात्राी गंगोत्राी में गंगा माता की पूजा के लिए पहुंचते है। गंगा का प्राकृतिक स्रोत गोमुख ग्लेशियर गंगोत्राी से 18 किलोमीटर दूर है। यमुनोत्राी से गंगोत्राी की सड़क मार्ग से दूरी 219 किलोमीटर है जबकि ऋषिकेश से गंगोत्राी की दूरी 265 किलोमीटर है और वहां से वाहन से सीधे पहुंचा जा सकता है।
केदारनाथ
चारधाम यात्रा का तीसरा पड़ाव केदारनाथ धाम है जो उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में आता है। ऋषिकेश से गौरीकुण्ड की दूरी 76 किलोमीटर है और यहां से 18 किलोमीटर की दूरी तय करके केदारनाथ पहुंच सकते हैं। केदारनाथ और लिंचैली के बीच 4 मीटर चैड़ी सीमेंटेड सड़क बना दी गई है जिससे श्रद्धालु आसानी से केदारनाथ पहुंच सकते हैं।
ब्रदीनाथ
बद्रीनाथ धाम तक गाड़ियां जाती हैं इसलिए यहां मौसम अनुकूल होने पर पैदल नहीं जाना पड़ता। ब्रदीनाथ को ‘बैकुण्ठ धाम’ भी कहा जाता है। यहां पहुंचने के लिए ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली और गोविन्दघाट होते हुए पहुंचा जा सकता है।
केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच कई और मंदिर भी हैं जिनके दर्शन तीर्थ यात्राी कर सकते हैं। इनमें भविष्यब्रदी मंदिर, नृसिंह मंदिर, बासुदेव मंदिर, जोशीमठ जैसे मंदिर ब्रदीनाथ यात्रा मार्ग के आसपास हैं जबकि केदारनाथ मार्ग पर विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी, मदमहेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर शामिल है। इसके अलावा 5 प्रयागों में से रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग केदार मार्ग पर और कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग ब्रदीनाथ मार्ग पर पड़ते हैं। चारधम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु और तीर्थ यात्राी इन मंदिरों में भी जाते हैं।
वैसे तो चारधाम यात्रा हर साल अप्रेल महीने में शुरू होती है और अक्टूबर-नवंबर में खत्म हो जाती है लेकिन सितंबर का महीना इस यात्रा का पीक सीजन होता है क्योंकि जून से अगस्त के बीच इस इलाके में भारी बारिश होती है जिसकी वजह से तीर्थ यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सितंबर चारधाम यात्रा पर जाने का सबसे उत्तम समय है।
यात्रा के दौरान रखें ध्यान
वैसे मान्यता यह भी है कि जिसे ईश्वर ने चार धाम की यात्रा के लिये बुलाया हो, उसका ध्यान भी वे स्वयं ही रखते हैं।