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Avnish Jain | Feb 15, 2021 | 100 Steps of Success
सौ कदम सफलता के
प्रत्येक कार्य को इस प्रकार करें जैसे पहली बार कर रहे हों
जो भी आप करें, जब भी करें, हर बार ऐसे करें, जैसे पहली बार ही कर रहे हों। जो भी आप देखें, जितनी बार देखें, हर बार ऐसे देखें, जैसे पहली बार देख रहे हों। जो भी खायें, जितनी बार खायें, हर बार यही सोचकर खायें, जैसे पहली बार खा रहे हों। तब आप बोर नहीं होंगे। सदैव तरो-ताजा एवं आनन्दित रहने का यही एकमात्र आसान तरीका है।
यदि गहराई से देखा जाए तो किसी भी कार्य की पुनरावृत्ति नहीं हो सकती। किसी भी स्थिति, परिस्थिति, मनःस्थिति और समय की प्रवृति की आवृति नहीं हो सकती। जीवन का हर क्षण नया ही होता है इसलिए हर क्षण स्वागत योग्य होता है। जो हर क्षण का स्वागत करता है, वह कभी पुराना हो ही नहीं सकता।
रोज-रोज एक जैसे कार्य करते रहने पर व्यक्ति ऊब जाता है। इसके लिए एक छोटे से अभ्यास की आवश्यकता है। हमें गत को, विगत को, कल को भूलने के अभ्यास की आवश्यकता है। धीरे-धीरे जब हम इस अभ्यास में सफल हो जायेंगे, तब हमें हर दिन, हर क्षण नया ही लगेगा। तब हर कार्य हमारे लिए नया ही होगा।
जिस प्रकार आप नदी के बहते पानी में दुबारा नहीं नहा सकते, उसी प्रकार किसी काम को दुबारा नहीं कर सकते। याद रखें, समय का प्रवाह तो पानी से भी कई गुना तेज होता है। सब कुछ समान होने पर भी हर क्षण बहुत कुछ बदलता रहता है। इस तरह हर कार्य हर क्षण नया ही होता है। किसी कार्य की कोई पुनरावृत्ति नहीं होती। जिस क्षण हमें यह बोधत्व प्राप्त हो जाता है उसी क्षण हमारा जीवन रूपान्तरित हो जाता है और यह रूपान्तरण अभी इसी वक्त घटित हो सकता है। इसके लिए कोई आयु या समय बाधक नहीं हो सकता है। तो आइए, जीवन को बदल डालें। एक नयी शुरुआत करें।
यात्रा-प्रवास, द्रास-परिहास, सोना-जागना, प्रेम-यौन सम्बन्ध, घूमना-फिरना, मिलना-जुलना, खाना-पीना, जैसे रोजमर्रा के कार्यों को इस प्रकार करें, जैसे प्रथम बार ही कर रहे हों। फिर देखिए, आपको हर कार्य में कितना आनन्द आता हैै। हर क्षण कितना नूतन नजर आता है। तब हर क्षण जीवन की नयी शुरुआत होगी। हर पल जीने योग्य होगा। हर समय उपभोग करने योग्य होगा। याद रखें, जीवन की सफलता इसी सोच पर निर्भर करती है।
प्रकृति के साथ ही व्यक्ति में भी प्रति क्षण परिवर्तन घटित होते रहते हैं और सभी प्राणी हर श्वास, हर क्षण का स्वागत करते हैं। याद रखें, जो क्षण गया, वो लौट कर नहीं आ सकता। जो काम हमने कर दिया, उसे दुबारा नहीं किया जा सकता। अब तो जो भी करेंगे, नया ही होगा। हर बार नया होगा इसलिए जरूरी है कि नया समझ कर ही करें। हर बार नया समझ कर करने में जो आत्मानुभूति होगी, जो आन्नद की अनुभूति होगी, वह शब्दातीत ही होगी।
ध्यान रहे, खुशी बाजार से खरीदी नहीं जा सकती, वह तो आपके भीतर से ही आ सकती है और भीतर की खुशी भी तब ही आयेगी जब आपके मन की स्लेट हाथोंहाथ साफ होती चली जायेगी। स्लेट को साफ रखने के लिए कुछ विशेष नहीं करना होगा, केवल हर क्षण को नया क्षण और हर कार्य को नया कार्य समझना होगा।
आप वहीं हैं, जो आपके विचार हैं। आपके विचार वही हैं, जो आपके संस्कार हैं। संस्कारों में परिवर्तन किये बगैर, विचारों में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। विचारों में परिवर्तन किए बगैर आप आधुनिक नहीं हो सकते, आज से नहीं जुड़ सकते। आज से जुड़े बगैर आप सफल नहीं हो सकते और संस्कारों को परिष्कृत करने का एक ही उपाय है कि आप सदैव ताजगी से, नवीनता से भरे रहें। चाहत तो कभी पूरी नहीं हो सकती किन्तु सदा तरो-ताजा रहने की चाहत तो पूरी हो ही सकती है। तब इससे बड़ी चाहत का कोई महत्व नहीं रह जायेगा।
दृष्टान्त: स्वामी विवेकानन्द एक बार जर्मनी के दौरे पर थे। वे दार्शनिक ड्यूसेन के मेहमान थे। उन दिनों ड्यूसेन जर्मन भाषा की एक दार्शनिक पुस्तक पढ़ रहे थे। स्वामीजी को बताया कि पुस्तक बड़ी अद्भुत है, गूढ़ है, पन्द्रह दिनों से पढ़ी जा रही है। इस पर स्वामी जी ने आग्रह किया- क्या आप एक घण्टे के लिए पुस्तक दे सकेंगे ? ड्यूसेन- क्यों नहीं, लेकिन इतने कम समय में आप कितनी पढ़ सकेंगे? स्वामी जी-पढ़ नहीं पायेंगे तो क्या देख तो लेंगे ही। स्वामी जी एकान्त में अध्ययनरत हो गये। एक घण्टे बाद लौटाते हुए बोले-पुस्तक वाकई अदभुत है। ड्यूसेन ने जिज्ञासा से पूछा कि क्या आपने पूरी पढ़ ली है ? स्वामी जी ने कहा हां, पढ़ भी ली है और समझ भी ली है। इस पर ड्यूसेन ने अपनी कई शंकायें उठाई और स्वामी जी ने व्याख्या सहित शंकाओं का समाधान कर दिया। ड्यूसेन हैरान था। पूछने लगा-स्वामी जी, जल्दी पढ़ने का तरीका उसे भी बताया जाये। स्वामी जी बोले बहुत आसान है, जब भी मैं कोई पुस्तक पढ़ता हूं यही सोचकर पढ़ता हूं कि इस विषय में पहली पुस्तक ही पढ़ रहा हूं। अपने समस्त पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों को दूर रखकर ही पढ़ता हूं।