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Agency | Jun 17, 2021 | 100 Steps of Success
सफलता ही प्रभुता है
1. सत्य ही सर्वशक्तिमान है, सत्य ही नित्य है। यदि आप सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं तो सफलता सुनिश्चित है। सत्य पर आधारित सपफलता में ही प्रभुता निहित है अर्थात् सत्यता ही प्रभुता है, प्रभुता ही सफलता है और सफलता ही प्रभुता है। आप तो बस सत्यता के साथ सलता की ओर कदम दर कदम बढ़ते रहें , प्रभुता की चिन्ता न करें। प्रभुता तो स्वतः ही उपलब्ध् हो जायेगी।
2. हर व्यक्ति पर प्रकृति और समाज का बहुत बड़ा कर्ज होता है। कर्ज चुकाते रहना ही व्यक्ति का सबसे बड़ा फर्ज होता है, और पफर्ज निभाने के लिए कुुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है। हमें अपने कार्य क्षेत्रा में अच्छी बुरी सभी परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है किन्तु जब हम हर कार्य को ईश्वरीय कार्य समझते हुए शुद्ध मानसिकता के साथ सम्पन्न करते हैं, तब हम प्रभुता के अत्यध्कि निकट होते हैं और यह निकटता ही हमारी सफलता है।
3. सफलता ईश्वरीय प्ररेणा और संवेदनशीलता पर निर्भर करती है। यदि हम सफलता को ही आराध्य की आरती समझ लें तो हमें अलग से किसी पूजा-पाठ की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। काम में विश्वास करना ही हमारी आस्तिकता है और काम को नकार देना ही नास्तिकता है इसलिए पूर्ण आस्तिकता से अपना काम करते रहना चाहिए
4. यदि आपको किसी साकार भगवान के दर्शन हो जायें तो क्या मांगोेगे? निश्चित रूप से कोई न कोई सफलता ही मांगोेगे। जब तक मांग है, तब तक ईश्वर के दर्शन जरा कठिन ही हैं इसलिए पहले मांग समाप्त करो और मांग सफलता प्राप्त होने पर ही समाप्त हो सकती है अर्थात अपनी कल्पनाओं को साकार करो, सफलता अपने आप मिल जायेगी।
5. अगर गहराई से देखा जाये तो यहां परमात्मा किसी को नहीं चाहिए। यहाँ तो किसी को भी सफलता के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए। साधु -संत, यशस्वी-तपस्वी, ज्ञानी-ध्यानी, योगी को भी कोई न कोई सिद्धि -प्रसिद्धि चाहिए। जिस प्रकार परमात्मा एक रहस्य है, उसी प्रकार सपफलता भी एक रहस्य है। जिस प्रकार परमात्मा आपके सबसे निकट है, उसी प्रकार सफलता भी सबसे निकट ही है। परमात्मा को शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार सफलता को भी अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। दोनों ही अनुभव की वस्तुयें है। इनमें से किसी एक की अनुभूति ही दूसरे की अनुभूति है।
6. जिस प्रकार कोई दूसरा व्यक्ति आपको परमात्मा के दर्शन नहीं करवा सकता, उसी प्रकार कोई दूसरा व्यक्ति आपको सफलता भी नहीं दिलवा सकता । आपको केवल तरीका बताया जा सकता है। मार्ग भी आपको ही चुनना पड़ेगा। उस पर चलना भी आपको ही पड़ेगा। रास्ते में कई समस्यायें आयेगी उन समस्याओं से जूझना भी आपको ही पड़ेगा।
7. यह भी सच है कि किसी निश्चित प्रयोजनार्थ ही हमें इस ध्रती पर भेजा गया हेै। प्रकृति और समाज द्वारा हमें किसी विशेष प्रयोजनार्थ ही सहेजा गया है। उस विशेष प्रयोजन की पहचान करना ही बुद्धत्व प्राप्त करना है। अगर दुनिया एक दुर्घटना है तो आदमी भी उसी दुर्घटना की उपज है। जिस प्रकार दुनिया की हर वस्तु सहज एवं सक्रिय है, उसी प्रकार हर व्यक्ति भी सहज एवं सक्रिय है। याद रखें, व्यक्ति जब तक सक्रिय है, तब तक ही वह दुनिया का हिस्सा है। वस्तुतः व्यक्ति की सक्रियता ही प्रभुता है।
8. एक निश्चित आरामदेह सुरक्षा, एक गहन आन्तरिक शांति एवं सहज सुखद अनुभूति व्यक्ति की तन्त्रिाकाओं को शान्त करती है। जब व्यक्ति समूची धर्मिकता से अपने काम में डूब जाता है, तब शांति के माध्यम से सफलता बरसती है। यदि सबसे दूर कोई है, तो वह आप खुद ही हैं। अपने आपसे अपनी दूरी घटाइए, सपफलता पाइए।
9. महान वैज्ञानिक एडीसन थोड़ा ऊँचा सुनते थे। एक बार किसी मित्रा ने मजाक में पूछ लिया आपको परमात्मा से शिकायत तो होगी कि दिमाग तो पूरा दिया किंतु सुनने की शक्ति थोड़ी कम दी? इस पर एडीसन ने हंसते हुए जवाब दिया परमात्मा ने ऐसा करके मुझ पर बहुत बड़ी कृपा की है अगर मैं दुनिया की सुनता तो बिखर जाता। दिल की सुनकर ही मैंने कुछ किया है। मेरे लिए तो सफलता ही प्रभुता है। इससे अधिक मुझे परमात्मा से और क्या चाहिए?
दृष्टांतः
एक बार एक व्यक्ति सुबह-सुबह महात्मा बुद्ध के पास आया और पूछनेे लगा महाराज आपने अब तक कितने व्यक्तियों को मोक्ष का रास्ता बताया है? कितनों को निर्वाण का रास्ता समझाया है? कितनों को सत्य का दिग्दर्शन करवाया है? बुद्ध ने गंभीरतापूर्वक जवाब दिया - तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर मैं शाम को दूँगा। इस बीच तुम्हें एक काम करना पड़ेगा। इस गाँव के प्रत्येक व्यस्क व्यक्ति के पास जाकर पूछना है कि वह क्या चाहता है? सबके जवाब लिखते जाना और शाम को आकर मुझे बताना। इस पर जिज्ञासु गाॅँव के हर व्यक्ति के पास पहुँचा। गाँव छोटा ही था सबसे पूछता गया और जवाब लिखता गया। किसी ने कहा, उसे ध्नन चाहिए, किसी को पुत्र चाहिए, किसी को आरोग्य चाहिए, किसी को मकान चाहिए, किसी ने कहा उसे जमीन चाहिए, किसी को ध्न्धें में लाभ चाहिए, किसी को सुन्दर पत्नि चाहिए किन्तु किसी ने भी मोक्ष, निर्वाण, सत्य या परमात्मा की इच्छा जाहिर नहीं की। जिज्ञासु बड़ा हैरान था किन्तु उसके प्रश्नों के जवाब मिल चुके थे। वह शाम को लौट कर बुद्ध के पास नहीं आया अर्थात् सबको सफलता ही चाहिए।