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Avnish Jain | Apr 16, 2021 | 100 Steps of Success
अपने-आप को बदलिए, बार-बार काम मत बदलिए
अपने कार्य का चयन काफी सोच विचार कर करें। पसंद, योग्यता, क्षमता, उपयोगिता, समय और स्थान को दृष्टिगत रखते हुए कार्य का चयन करें। फिर सकारात्मक सोच के साथ प्रसन्नतापूर्वक अपने आपको कार्य के प्रति समर्पित कर दें। तब आपको सफलताएं अपने आप मिलती चली जायेंगी और आपको कभी अपना कार्य बदलने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
यह तो निश्चित है कि हर कार्य में कठिनाइयां आती हैं। आरम्भ में कुछ अधिक आती हैं, पर इसका यह मतलब तो नहीं कि आप घबरा कर काम ही बदल दें। हर कार्य में ध्यान लगाना पड़ता है। यदि आप अपनी लागत वसूल होने से पूर्व ही अपना काम बदल लेते हैं तो जरा सोचिए, तब समय, श्रम, संसाधनों एवं अनुभव का कितना अपव्यय होगा। फिर इस बात की भी क्या गारण्टी है कि आप नये कार्य में सफल हो ही जायेंगे।
यदि आपको लगता है कि आपका चयन गलत था अथवा परिस्थितिवश अब वर्तमान कार्य मेें अधिक दम नहीं रहा है और आप किसी नये कार्य में अधिक सफल हो सकते हैं, तब सावधनीपूर्वक अपना कार्य बदल सकते हैं। परन्तु याद रखें, नये कार्य में उन सब गलतियों को मत दोहराइए, जिनके कारण आपको कार्य फिर बदलना पड़े।
किसी कार्य को समय पर आरम्भ करना और फिर उसे विपरीत परिस्थितियों में भी जारी रखना ही सबसे बड़ी सफलता है। डर कर कार्य को बीच में छोड़ देना या मन लगाकर नहीं करना ही विफलता है। पिछली बातों, घटनाओं, दुर्घटनाओं एवं विफलताओं को भूल कर यदि आप अपने कार्य को नये सिरे, नये नजरिये से व्यवस्थित करते हुए उत्साह के साथ करते रहेंगे तो यही कार्य आपको संतोष एवं सफलता देता चला जायेगा।
याद रखें, कार्य स्थल से बढ़कर कोई मन्दिर नहीं और कार्य से बढ़कर कोई पूजा नहीं। जब आप अपने कार्यस्थल को मन्दिर समझ लेंगे, तब बार-बार मन्दिर बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। फिर भी यदि परिस्थितियां प्रतिकूल हों तो परमात्मा को दोष मत दीजिए, परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाइए। अपनी कठिनाइयों का पता लगाइए, तब दोष काम में नहीं, आप में ही मिलेगा इसलिए परिंस्थतियों के दास मत बनिए, परिस्थितियों को अपना दास बनाइए। जो कर रहे हैं, उसे ही बेहतर बनाइए।
बार-बार कार्य बदलने की बजाय अपने कार्य को अध्निक परिवेश में व्यवस्थित करें। अपनी विफलताओं का गंभीरतापूर्वक विश्लेषण करें। कार्य स्थल के वातावरण को अनुकूल बनायें। अपनी विचारधारा एवं कार्यशैली को परिस्थितियों के अनुरूप ढालें। आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए गुणवत्ता में वृद्धि करते जाये इसी कार्य में निश्चित रूप से सफलता मिल जायेगी।
यदि आप किसी कार्य में सफल नहीं हो पाते हैं तो मान कर चलें, आपके स्तर पर निश्चित रूप से कुछ कमियां अवश्य रही होंगी। सोचिए, क्या काम बदल लेने से कमियां बदल जायेंगी? क्या परिस्थितियां बदल जायेंगी? शायद नहीं। तो काम मत बदलिए, अपनी मनःस्थिति बदलिए, कमियां दूर करिए, कार्य को सम्पूर्णता के साथ करिए, तब आपको कार्य बदला हुआ नजर आयेगा। तब ही कार्य में आनन्द आ पायेगा।
इस अस्तित्व में दो व्यक्ति एक से नहीं हो सकते। एक सा ही काम करने वाले विभिन्न व्यक्तियो के कार्य-परिणाम भी एक से नहीं हो सकते इसलिए आपको अधिक दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है। आप तो अपना कार्य अपने तरीके से करते रहै, किसी से तुलना करने की आवश्यकता नहीं है।
जो रातों-रात करोड़पति बनना चाहता है, जो एक साथ कई लक्ष्य साध्नन चाहता है, वही बार-बार काम बदलना चाहता है। याद रखें जो एक साथ कई जगह पहुंचना चाहेगा, वह कहीं भी नहीं पहुंच पायेगा। बार-बार काम बदलने का अर्थ होगा, हर बार पीछे की ओर जाना। यह भी याद रखिये, पीछे जाने की भी एक सीमा होती है इसलिए जिस कार्य के प्रति आपको आशंका हो, उसे आरम्भ ही मत करो और आरम्भ कर दिया तो फिर पीछे मत हटो। डटे रहोगे तो तमाम आंशकायें निर्मूल होती चली जायेंगी।
दृष्टान्तः
मिस्टर प्रयोगचन्द एक अति उत्साही युवक थे। आरम्भ में उसने प्रोपर्टी डीलिंग का व्यवसाय प्रारम्भ किया। खूब भाग-दौड़ की किन्तु कामयाबी नहीं मिली। पैसा भी काफी फंस गया। खरीदे हुए या सौदा किए हुए भूखण्ड तेजी से नहीं बिक रहे थे। परेशान होकर प्रयोगचन्द ने बिल्डिंग मैटेरियल का व्यवसाय आरम्भ कर दिया। प्रोपर्टी के नये सौदे बन्द कर दिए किन्तु वह नया व्यवसाय दो साल भी ठीक से नहीं कर सका। यहां भी लेनदारियां और देनदारियां बढ़ गई। रिजेक्टेड सामग्री काफी बच गई। प्रयोगचन्द ने यह व्यवसाय भी बन्द कर दिया और बिजली के सामान की दुकान लगा ली। तीन साल तक इस दुकान में काफी मेहनत की किन्तु यहां भी सफलता नहीं मिली। काफी पैसा उधार में फंस गया। रिजेक्टेड माल का दुकान में ढेर सा लग गया किन्तु इसी दौरान प्रोपर्टी में काफी उछाल आ गया। प्रयोगचन्द ने बिजली की दुकान बन्द कर पुनः प्रोपर्टी का काम शुरू कर दिया। भूखंडो की कीमतें पांच गुना बढ़ गई थी। प्रयोगचन्द को लाभ होने लगा किन्तु उसे इस बात का भी पछतावा था कि उसने बार-बार काम बदल कर समय और पूंजी का कितना अपव्यय कर लिया है। यदि प्रोपर्टी के धंधे में ही लगा रहता तो आज कहां पहुंच चुका होता।