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Agency | Mar 12, 2021 | 100 Steps of Success
अपने काम से नफरत करना अपने-आप से नफरत करना है
प्रत्येक व्यक्ति पर परिवार, समाज एवं राष्ट्र का अकूत कर्जा होता है। हर व्यक्ति इस कर्ज भार से पूर्णतः मुक्त तो नहीं हो सकता किन्तु हल्का अवश्य हो सकता है और हल्का होने के लिए उसे कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। यदि कोई अपने काम से नफरत करेगा तो जिन्दगी का रथ आगे कैसे बढ़ेगा? इसलिए हमें अपने काम से उतना ही प्रेम करना चाहिए, जितना हम अपने-आप से करते हैं। हमारे पैर और जूते हर अच्छी बुरी जगह एवं गंदगी पर चलते हैं, तो क्या हम अपने पैरों या जूतों से नफरत करते हैं ? कार के पहिए ऊबड़-खाबड़ रास्तों के तमाम कीचड़ से गुजरते हैं तो क्या हम कार या पहियों से नफरत करते हैं ? नहीं। तो फिर अपने काम से नफरत करने का कोई औचित्य ही कहां है। हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि हमारे होने का कोई न कोई प्रयोजन अवश्य है। और उस प्रयोजनार्थ किसी न किसी काम का आयोजन भी आवश्यक है इसलिए प्रयोजन की प्राप्ति हेतु आवण्टित कार्य को अपना समझ कर ही करना चाहिए। जब हम अपने परिवार, अपने समाज, अपने धर्म और अपने राष्ट्र से नफरत नहीं करते, तब अपने कर्म से नफरत कैसे कर सकते हैं। कोई भी काम न बढ़िया होता है, न घटिया होता है। काम तो बस काम होता है, अच्छा या बुरा तो बस हमारा नजरिया होता है। काम कोई मजबूरी नहीं, जीने के लिए जरूरी है। काम तो जिन्दगी का पर्याय है, जिन्दगी की परिभाषा है, हमारे होने का तात्पर्य है। काम ही हमारी पहचान है, काम ही हमारी आन, बान और शान है। काम ही हमारी मुस्कान है। एक से ही कपड़े, एक ही ढंग से हम रोज पहनते हैं, पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि हम कपड़े पहनना ही छोड़ दें। हम दिन भर कहीं भी रहें, शाम को तो घर लौटते ही है, पर इसका अर्थ यह तो नहीं उकताकर कदम कहीं और मोड़ दें। तब अपने काम से उकता जाने का कोई अर्थ नहीं है। यदि हम अपने वर्तमान कार्य को छोड़कर कोई दूसरा कार्य अपना लेते हैं, तब इस बात की क्या गारण्टी है कि हम दूसरे कार्य से कभी उकता नहीं जायेंगे इसलिए जो कार्य हमारे हाथ में है, उसे अपनत्व एवं गंभीरता पूर्वक करते रहें। यदि बदलना पड़े तो सोच समझकर बदलें।
यह भी संभव नहीं है कि आप रोज-रोज अपना काम बदल सकें। काम जो भी मिला या आपने चुना, उसे बीच में छोड़ने का कोई औचित्य नहीं है। हां, कोई बेहतर कार्य या विकल्प उपलब्ध हो तो अवश्य बदल सकते हैं। अपने कार्य से ऊब जाने का कोई अर्थ नहीं है। काम कैसा भी हो, अपने कार्य के माध्यम से ही अपने जीवन में अर्थ भर सकते हैं। क्या आप अपनी सूरत से नफरत करते हैं ? क्या आप जीव-जगत और प्रकृति से नफरत करते हैं ? क्या आप परमात्मा या परमात्मा की किसी मूरत से नफरत करते हैं ? तब आप अपने काम से ही कैसे नफरत करते हैं ? याद रखे काम ही पूजा है, काम ही अर्चना है। काम ही आपकी शहादत है, काम ही इबादत है। काम तो खुदा की कायनात है। यदि आप कोई काम छोड़ देते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसे कोई दूसरा भी नहीं करेगा। जब दूसरे लोग इसी कार्य को बड़े आनन्द के साथ करते रहते हैं, तब आप क्यों नहीं कर सकते ? याद रखें, जिन्दगी तो वैसे ही बहुत छोटी है, फिर बार-बार काम बदल कर इसे और छोटी मत बनाइए।
जहां काम है, वहां सृष्टि है। जहां सृष्टि है, वहां काम है। मानवीय सृष्टि में जो कुछ दृष्टिगोचर होता है, वही काम है। काम के आगे काम है, और काम के पीछे काम है। काम बिना न कोई सृजन है, न आराम है। ’काम’ तो जीवन का पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ से घृणा करना, जीवन से घृणा करना है। याद रखें, घृणा करने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है और नकारात्मक ऊर्जा के रहते हर सफलता संदिग्ध ही होती है इसलिए अपने काम से कभी घृणा न करें, लोगो से घृणा न करें। घृणा करनी ही हो तो अपनी कार्य प्रणाली से करें। दृष्टान्त- एक भिखारी था। उसे अपने धन्धे से इतना लगाव था कि वह धीरे-धीरे पैसे वाला हो गया। घर, गाड़ी आदि सभी सुविधायें उपलब्ध हो जाने के बाद भी उसने अपना धन्धा नहीं छोड़ा। सुबह जल्दी आकर अपने नियत स्थान पर बैठ जाता। शाम को उसका ड्राईवर उसे लेने आता। जैसे ही कार उसके पास आकर रुकती, अपनी आदत के मुताबिक वह अपना कटोरा ड्राईवर के आगे कर देता। ड्राइवर भी मालिक की आदत से वाकिफ था। तुरन्त अपनी जेब से एक सिक्का निकाल कर कटोरे में डाल देता। भीख मिलने पर ही भिखारी अपनी चटाई उठाकर अपनी कार में सवार हो जाता और घर चला जाता। सचमुच भिखारी को अपने धन्धे से कितना प्यार था। यह प्यार ही उसकी सफलता का राज था।