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Avnish Jain | Aug 29, 2022 | Editorial
रेपो रेट से महंगाई पर
अंकुश की कवायद
भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में फिर बढ़ोतरी कर स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि फिलहाल बेलगाम महंगाई को नियंत्रित करना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। महंगाई का हवाला देकर इस वित्तीय वर्ष में वह पहले भी दो बार रेपो रेट बढ़ा चुका है। इस बार बढ़ोतरी की घोषणा करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने साफ कहा कि अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात में केंद्रीय बैंक से नरम रुख की उम्मीद नहीं रखी जानी चाहिए। यानी महंगाई का ग्राफ यों ही चढ़ता रहा तो आने वाले समय में रेपो रेट में बढ़ोतरी की जा सकती है। अब तक की बढ़ोतरी से बैंकों की ब्याज दर आठ फीसदी तक पहुंचने वाली है। इससे कर्ज ले चुके लोगों के साथ-साथ वे लोग भी प्रभावित होंगे, जो कर्ज लेने वालों की कतार में हैं।
रेपो रेट में बढ़ोतरी बाजार को भी प्रभावित करेगी। बाजार में नकदी का प्रवाह कम होने से मांग घटेगी। रिजर्व बैंक का मानना है कि मांग घटने और सप्लाई बढ़ने से कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। महंगाई के खिलाफ यह फार्मूला दुनियाभर के केंद्रीय बैंक आजमा रहे हैं। यूएस फेडरल रिजर्व लगातार दूसरी बार पिछले महीने ब्याज दरों में 0.75 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर चुका है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ब्याज दरों में 50 बेसिस पाॅइंट की बढ़ोतरी की है। यह पिछले 27 साल की सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। इन कोशिशें के बावजूद महंगाई पर अंकुश नहीं लग सका है। भारत में भी पिछले ढाई महीनों में रेपो रेट 1.4 प्रतिशत बढ़ाने के बावजूद महंगाई चिंताजनक स्तर पर बरकरार है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधरित महंगाई दर जून में 7.01 प्रतिशत थी, जबकि खुदरा महंगाई दर जनवरी से ही 6 प्रतिशत से ज्यादा दर्ज की जा रही है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर 15 महीने से दो अंकों में चल रही है। जून में यह 15.18 प्रतिशत थी।
भारत में महंगाई के लिए घरेलू कारण कम, अंतराष्ट्रीय कारण ज्यादा जिम्मेदार हैं। डाॅलर से रुपए को लगातार मिल रही चुनौती इनमें से एक है। अमरीकी केंद्रीय बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी को डाॅलर के मुकाबले रुपए में 4.7 प्रतिशत की गिरावट का प्रमुख कारण माना जा रहा है। कच्चा तेल भी आग में घी डाल रहा है। जून में 95 डाॅलर प्रति बैरल से कीमत जुलाई में 115 डाॅलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें को नीचे लाकर महंगाई का पारा उतारने में मदद मिल सकती है। महंगाई पर अंकुश की कवायद के साथ-साथ भारतीय बाजार की मजबूती के उपाय भी खोजे जाने चाहिए। रेपो रेट बढ़ाकर बाजार में मांग घटाना दीर्घकालीन हल नहीं हो सकता। बाजार की सेहत के लिए मांग और आपूर्ति में तर्कसंगत संतुलन बेहद जरूरी है।
Shalu jain 2 years ago
Impressive