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Avnish Jain | Sep 01, 2023 | Editorial
.लो अब चांद आया पहलू में
चन्द्रयान-3 की सफलता से संपूर्ण देश उत्साहित
चन्द्रयान-3 की सफलता के साथ भारत ने विश्व के उन चार देशों में अपना स्थान बना लिया है जो अब चांद की कक्षा में पहुंच कर शोध का कार्य शुरू कर चुके हैं। विशेष बात यह है कि भारतीय चन्द्रयान मिशन की लागत विश्व के अन्य देशों के मुकाबले कई गुणा कम रही है। यही नहीं विश्व स्तर पर भारत एकमात्र देश है जो चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचा है, अब तक कोई भी देश इस कठिन सतह पर नहीं पहुंच पाया हैं। देश के वैज्ञानिकों ने इस सत्य को साकार कर दिया है कि ‘...लो अब चांद आया पहलू में’
चंन्द्रयान-3 की सफलता के साथ भारत ने अब अपनी शुक्र व सूर्य के संदर्भ में खोज व मिशन को भी गति देने की घोषणा की है। भारत के वैज्ञानिकों को इस मिशन में सरकार का भी पूरा सहयोग मिला है और आज संपूर्ण देश उत्साहित नजर आता हैं देश की युवा पीढ़ी को एक नया संदेश मिला है कि वह किसी भी कार्य को अंजाम दे सकती है। आज भारत के युवा विशेषज्ञों के साथ वैज्ञानिकों की विश्व स्तर पर मांग बढ़ रही है।
ल्यूनर की चन्द्रमा पर पहुंच के साथ भविष्य में सोलर पावर के सृजन की संभावना को बढ़ा दिया है। चन्द्रयान का यह मोड्यूल सोलर पावर ल्यूनर मोड्यूल है। विक्रम ने यह कमाल कर दिया है। चन्द्रयान-3 की यात्रा का समय रूस के लूना 25 की यात्रा के समय ही निर्धरित किया गया और इसमें चन्द्रयान-3 ने लूना 25 को पीछे छोड़ दिया है। रूस के इस यान को सफलता हाथ लगी है।
रूस के ल्यूनर की हाई लेंडिंग के कारण यान ही नष्ट हो गया। इसी से यह स्पष्ट हो गया था कि चन्द्रमा का दक्षिण छोर बहुत कठोर व उबड़-खाबड़ है, लेकिन चन्द्रयान-3 भारतीय वैज्ञानिकों के कर्म व विश्वास की सफलता कहा जा सकता है। भारत का चन्द्रयान चन्द्रमा के अंधेरे क्षेत्र में भी पूरी सफलता के साथ उतर कर स्थापित हुआ है। इस मिशन में अमेरिका, रूस के वैज्ञानिकों की सलाह व सहयोग समय-समय पर भारतीय वैज्ञानिकों को मिला है और भारतीय वैज्ञानिकों ने इस सहयोग के लिए अमेरिका व रूस के वैज्ञानिकों की सराहना भी की है।
इसरो ने निरंतर संघर्ष व मेहनत की है। प्रथम चन्द्रयान की असफलता के पश्चात् इसरो ने कठोर मेहनत की और चन्द्रयान-दो सफलता के बहुत नजदीक जाकर विपफल हो गया था, लेकिन इसरो के वैज्ञानिक निराश नहीं हुए और उन्हें अंततः चन्द्रयान-3 से सफलता प्राप्त हो ही गई।
चन्द्रयान प्रथम को वर्ष 2008 में अंतरिक्ष मिशन पर भेजा गया था। तकनीकी क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने के साथ इसरो की प्रतिष्ठा को भी चार चांद लग गए हैं। चन्द्रमा की दक्षिण सतह पर बहुत अधिक मात्रा में बर्फ जमी हुई है और कहा जा रहा है कि उस क्षेत्रा में हालात बहुत अधिक सर्द हैं और इस बर्फ का पिघला कर पानी का रूप दिया जा सकता है। दक्षिण ध्रुव से जुड़ी हुई पहाड़ियों पर अवश्य ही सूर्य की रोशनी को सोलर पावर में परिवर्तित कर सकते हैं। भारत के चन्द्रयान-3 मिशन की लागत 74.6 मि. डाॅलर अर्थात 612 करोड़ रुपए के स्तर पर रही है, लेकिन विश्व के संपन्न देशों व चीन की लागत तो भारत के मुकाबले कई गुणा अधिक रही है। आज भारत चन्द्रमा पर पहुंच गया है और भारत के इस चन्द्रयान ने अपना अनुसंधन कार्य भी शुरू कर दिया है। चन्द्रयान की सफलता से भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग करने वाली कंपनियों को भी महत्वपूर्ण लाभ होने की संभावना है। यही कारण है कि चन्द्रमा की सतह पर पहुंचने की संभावना के साथ इन कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में एक दिन में ही 1300 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। चन्द्रयान की सफलता के साथ निश्चित रूप से भारत में काॅर्पोरेट क्षेत्रा भी उत्साहित है। अध्किांश कंपनियों ने भी कहा है कि इससे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधन संगठन के साथ अनेक भारतीय कंपनियों के लिए भी नए विकास के अवसर खुलेंगे। चन्द्रयान की सफलता व क्रियान्वयन में 400 से अधिक कंपनियों की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में हिस्सेदारी व सहयोग रहा है। इससे इसरो को वैश्विक स्तर पर और अधिक परियोजनाओं के क्रियान्वयन का अवसर मिलेगा। अनेक विकसित देशों की कंपनियां भी भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग की पेशकश करेगी।