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Avnish Jain | Nov 29, 2021 | Editorial
हवा साफ रखने के ठोस उपाय हों
राष्ट्रीय राजधानी की हवा में प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए दिल्ली सरकार ने जिन चार तात्कालिक कदमों की घोषणा की, वे अत्यंत जरूरी हो गए थे। स्कूल-काॅलेजों को हफ्तेभर के लिए बंद करने, सरकारी और गैर-सरकारी ऑफिसों में वर्क फ्रॉम होम लागू किए जाने और हवा में धूल की मात्रा बढ़ाने वाले निर्माण कार्यों पर अस्थायी रोक लगाने से कुछ राहत तो जरूर मिलेगी। जहां तक लाॅकडाउन की बात है तो सरकार ने इस पर भी कुछ प्रस्ताव तैयार किए हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे जाने हैं। अफसोस की बात यह है कि राहत के ये उपाय तब किए गए, जब सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जरूरत बताई। अच्छा होता कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से पहले ही सही समय पर इस तरह के कदम उठा लेती। आखिर मौसम विभाग की तरपफ से जुटाई गई सूचनाएं तो पहले से उपलब्ध् थीं। पराली का धुआँ आने की बात भी पहले से मालूम थी। समय से कदम उठाए जाते तो संभवतः हवा की क्वालिटी इतनी खराब न होती। मगर ध्यान में रखने की बात है कि न तो यह सवाल इन चार-पांच दिनों का है और न ही मामला दिल्ली और आसपास के इलाकों तक सीमित है।
पिछले कई वर्षों से इस मौसम में दिल्ली की हवा इतनी खराब हो जाती है कि दम घुटता-सा लगने लगता है। उस दबाव में ऑड -ईवन जैसे कदम उठाए जाते हैं, जिनसे तात्कालिक तौर पर कुछ राहत भी मिलती है, लेकिन जैसे ही यह वक्त बीतता है, दूरगामी उपाय मानो अजेंडे से गायब ही हो जाते हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि देश के अन्य हिस्सों में इस दौर में भी हवा का प्रदूषण मुद्दा बनता नहीं दिखता। स्विट्जरलैंड स्थित क्लाइमेट ग्रुप आईक्यूएयर की ओर से करवाई गई ताजा स्टडी पर नजर डालें तो खराब एयर क्वालिटी वाले दुनिया के दस शहरों की सूची में दिल्ली के साथ ही कोलकाता और मुंबई भी शामिल हैं। जाहिर है तात्कालिक संदर्भों में ये महानगर भले दिल्ली से बहुत बेहतर लगें, लेकिन दुनिया के स्तर पर देखा जाए तो हवा की क्वालिटी को दुरुस्त करने की जरूरत तो यहां भी है ही। हालांकि ज्यादा बुरा हाल निश्चित रूप से उत्तर भारत के छोटे-छोटे शहरों में है। सेंट्रल पलूशन कंट्रोल बोर्ड के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले हफ्ता देश के 15 सबसे ज्यादा प्रदूषित हवा वाले शहरों में दस यूपी के पाए गए। इनमें फिरोजाबाद और आगरा भी थे, जहां एक्यूआई क्रमशः 489 और 472 पाया गया। यानी हालात कमोबेश दिल्ली-एनसीआर जैसे ही बुरे हैं। साफ है कि इस समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर और दीर्घकालिक नजरिए से ठोस उपाय अपनाते और जारी रखते हुए ही हल किया जा सकता है।