+91-9414076426
Avnish Jain | Mar 12, 2021 | Editorial
जीएसटी व्यावसायिक प्रताड़ना की बजाए बने आर्थिक विकास का सेतु
गुड्स एंड सर्विस टेक्स (जीएसटी) को अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का एक क्रांतिकारी स्वरूप माना जाता है और निसंदेह आज सरकार की राजस्व कर आय जीएसटी के माध्यम से गत चार माह के दौरान रिकार्ड स्तर पर पहुची है, लेकिन सरकार व उसके अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि व्यापार व उद्योग इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। आयकर की कमी दरें 90 प्रतिशत तक थीं, लेकिन जैसे-जैसे आयकर की दरों में कमी के साथ आयकर सरलीकरण किया गया। आज आयकर विवरणी के पश्चात अधिकांश प्रकरणों में करदाता को प्रत्यक्ष रूप से अधिकारी के समक्ष उपस्थिति नहीं होना पड़ता है और कर निर्धारण तथ्यों व उपलब्ध् दस्तावेज के आधार पर कर दिया जाता है। इससे प्रत्येक कर आय में व्यापक वृद्धि हुई है। सरकार कर की दरों को जितना कम रखेगी। कार्य प्रणाली को जितना सरल बनाएगी निश्चित रूप से कर की चोरी भी रुकेगी तथा राजस्व कर आय में भी व्यापक वृद्धि देखने को मिलेगी। पुलिस जैसी वर्दी में आए दिन व्यापारियों के कार्य स्थलों, उनके घरों में घुसकर छापेमारी करना उचित नहीं है। स्वयं प्रधनमंत्राी ने उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना संबंधित संवाद के दौरान कहा कि व्यापार में कम से कम सरकारी हस्तक्षेप होना चाहिए। यह हस्तक्षेप समाधान लाने की बजाए अधिक समस्याएं उत्पन्न करता है। स्व विनिमय, स्व सत्यापन व स्व. प्रमाणक पर जोर दिया जाना चाहिए। गत दिनों अनेक व्यापारिक संगठनों ने जयपुर से सांसद रामचरण बोहरा के नेतृत्व में जीएसटी आयुक्त से भेंट करके अपनी पीड़ा व व्यापार में आने वाली बाधाओं के बारे में जानकारी दी है।
प्रशासनिक व्यवहार इतना कमजोर व हल्का है कि व्यवसायी वर्ग को जीएसटी चोर की संज्ञा देकर उसको बदनाम किया जाता है। संबंधित फर्मो की बिक्री को मूल कंपनी की बिक्री में जोड़ कर अधिक कर वसूली के नोटिस जारी करना तथा आईटीसी को नकारने जैसी अनेक घटनाएं सामने आई हैं। यही नहीं अनेक व्यवसाइयों को बांटकर गैरजमानती गिरफ्रतारी की धमकी के साथ प्रताड़ित किए जाने की शिकायतें सामने आई हैं। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय स्तर पर 26 पफरवरी को बंद की भी घोषणा व आयोजन किया गया था। जीएसटी की अधिकांश आय तो औद्योगिक विनिर्माण स्तर पर ही तय हो जाती है। उसके पश्चात तो मूल्य न पर ही जीएसटी देय होता है, जिसकी हिस्सेदारी बहुत कम होती है, लेकिन सर्वाधिक प्रताड़ना व अत्याचार इसी छोटे व्यवसायी वर्ग को सहन करना पड़ता है, क्योंकि बड़े उद्योगों तक तो विभाग रसूखों के चलते पहुंच ही नहीं पाता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सीजीएसटी विभाग को व्यवसाय मित्र के रूप में कार्य करना चाहिए। पूर्व में कभी पुलिस थानों के बाहर यह लिखा होता था कि ‘मेरे योग्य सेवा’ लेकिन अब पुलिस थाने सेवा की बजाए प्रताड़ना के केन्द्र बन गए हैं। ठीक इसी तरह जीएसटी व कर विभागों में भी मित्रवत व्यवहार की बजाए प्रताड़ित किए जाने की कार्यवाई अधिक की जाती है और इसका प्रतिकूल प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर समय-समय पर देखने को मिला है। सरकार को इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
आर्थिक अपराध के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का भी स्पष्ट मत रहा है कि सीआरपीसी की धारा 41 के अंतर्गत 5 वर्ष सजा का प्रावधान है, लेकिन विशेष परिस्थितियां होने पर ही गिरफ्तारी की जा सकती है। देश के छोटे-छोटे व्यापारियों के संदर्भ में ऐसी धाराओं का उपयोग निश्चित रूप से देश की अर्थव्यवस्था व व्यवसाय क्षेत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। आज व्यवसाय क्षेत्र की छोटी-छोटी कार्य प्रणाली संबंधित गलती के कारण चोर घोषित कर दिया जाता है, लेकिन सरकार व प्रशासन द्वारा विशेष रूप से व्यवसाय क्षेत्र के प्रशिक्षण का कार्य नहीं किया जाता है। अब तक 900 से अधिक संख्या में जीएसटी संशोधन किए गए हैं और यह कानून सरल होने की बजाए अधिक पेचीदा हो गया है। आज आवश्यकता कानूनों के सरलीकरण की है, ताकि बहुत कम पढ़ा-लिखा व्यापारी व उद्यमी भी कानून को समझ सके और इसकी पालना कर सके। कठिन व पेचीदा कानून की पालना के लिए प्रत्येक छोटा व्यापारी विशेषज्ञों की सलाह व इसके लिए अतिरिक्त प्रशासनिक खर्च उठाने की स्थिति में न सरकार व प्रशासन के साथ वित्त विभाग को इस पर ध्यान देना चाहिए। व्यवसाय समूहों ने जीएसटी आयुक्त से मिलकर निश्चित रूप से सकारात्मक व्यवहार का परिचय दिया है और आगे बढ़कर सरकार से जीएसटी के सफल क्रियान्वयन व परिचालन के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन की मांग की है। यह सकारात्मक प्रयास है और सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। देश के अप्रत्यक्ष कर कानून में जो महत्वपूर्ण बदलाव जीएसटी के रूप में किया गया है। वह देश की अर्थव्यवस्था की सपफलता व विकास का सेतु बनना चाहिए। व्यवसाय जगत के लिए अभिशाप नहीं बन जाना चाहिए। सरकार व प्रशासन को इस पर विशेष ध्यान गंभीरता के साथ देना चाहिए।