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Avnish Jain | Dec 08, 2022 | Editorial
विश्वसनीयता के लिए
किसी भी देश के लोकतंत्र का आधार इस बात पर टिका होता है कि वहाँ चुनाव की प्रक्रिया को कितने निष्पक्ष और स्वच्छ तरीके से संचालित किया जाता है और उस पर आम जनता को कितना भरोसा है।
जाहिर है, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव इस पर निर्भर करता है कि निर्वाचन आयोग और उसका संचालन करने वाले अधिकारी किसी नेता या पार्टी के आभामंडल से प्रभावित हुए बिना कैसे सिर्फ नियम-कायदे के मुताबिक अपना काम करते हैं। लेकिन कई बार चुनावों के दौरान मतदान प्रक्रिया से लेकर नतीजों तक को लेकर पार्टियां जिस तरह से सवाल उठाती हैं, उससे ऐसा संदेश निकलता है कि चुनावों को और ज्यादा विश्वसनीयता का आधार देने की जरूरत है।
हालांकि देश के निर्वाचन आयोग ने स्वच्छ चुनाव आयोजित कराने के लिए हर स्तर पर चैकसी बरती और कोशिश की कि नतीजों और प्रक्रिया को लेकर कोई शिकायत न उभरे। लेकिन काम के बोझ और जिम्मेदारियों के विस्तृत दायरे के बीच अगर किसी भी पक्ष की ओर से उठे सवाल विश्वसनीयता को परखे जाने की मांग करते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि ऐसे तंत्र को भरोसे की कसौटी पर खरा साबित किया जाना चाहिए।
शायद यही वजह है कि सर्वाेच्च न्यायालय निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति को लेकर एक अहम टिप्पणी की और एक मजबूत मुख्य चुनाव आयुक्त की जरूरत पर जोर दिया। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि संविधान ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों के ‘नाजुक कंधों’ पर बहुत जिम्मेदारियां सौंपी हैं और वह मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर टीएन शेषन की तरह के सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति को चाहता है।
सच यह है कि पिछले कुछ समय से चुनाव प्रक्रिया जिस तरह संचालित होती रही है, उसे लेकर उठने वाली आशंकाएं इस संस्था की मजबूती और विश्वसनीयता को और मजबूत करने की जरूरत दर्शाती हैं। संविधान और आम नागरिकों के भरोसे के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त को किसी भी राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है, इसलिए उसे स्वतंत्रा और स्वायत्त होना चाहिए। इसलिए अदालत ने खासतौर पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया को तकलीफदेह करार दिया और कहा कि इसके लिए कोई कानून न होने का फायदा उठाने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है।
दरअसल, चुनावों के दौरान अलग-अलग मसलों को लेकर विपक्षी दलों की ओर से सवाल उठाए जाते रहे हैं और शिकायतें आयोग को भेजी जाती रही हैं। एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र में होना यह चाहिए कि आयोग ऐसी शिकायतों पर बिना किसी आग्रह के स्पष्ट संदेश देने वाली कार्रवाई करे। लेकिन यह तभी संभव है जब आयोग को संचालित करने वाले इसके अधिकारी का व्यक्तित्व सुदृढ़ और मजबूत हो।
इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ में मौजूद न्यायमूर्ति के एम जोसफ ने यहां तक कहा कि हमें मौजूदा दौर में ऐसे मुख्य चुनाव आयक्तु की जरूरत है जो प्रधानमंत्राी के खिलाफ शिकायत मिलने पर भी कार्रवाई कर सके। गौरतलब है कि भारत में चुनावों के संचालन के संदर्भ में जो याद रखी जाने वाली कुछ शख्सियतें रहीं, टीएन शेषन उनमें से प्रमुख थे।
नब्बे के दशक में जब वे मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे, उस दौर में स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव आयोजित कराना एक चुनौती थी। लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में किसी नेता या दल के प्रभाव में आए बिना जिस तरह संपूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया का संचालन किया, वह स्वतंत्र, निष्पक्ष और स्वच्छ चुनावों के आयोजन का एक ठोस उदाहरण है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अगर एक सुदृढ़ चरित्र वाले मुख्य निर्वाचन आयुक्त की जरूरत पर जोर दिया है, तो इसकी अहमियत समझी जा सकती है।