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Avnish Jain | Oct 27, 2023 | Social Update
प्रकाश का वास्तविक अर्थ है अंधेरे की समाप्ति। अंधेरा सदैव मानव जाति के लिए चुनौती रहा है। यह चुनौती चाहे निरक्षरता के रूप में रही हो या अंधविश्वास, गरीबी, धर्मिक कट्टरता के रूप में, पर यह भी सच है कि मनुष्य ने इससे कभी हार नहीं मानी और निरंतर संघर्षशील रहा। शुक्ल यजुर्वेद कहता है - ज्योति ही अग्नि है, इसलिए ज्योति जन जीवन के प्रकाश की आहुति है। ज्योति का सरलतम रूप दीपक है, वो हमारी चेतना का प्रतिबिम्ब भी है। हमारे यहां दीपदान की प्राचीन परंपरा है, तभी तो अज्ञेय लिखते हैं - ‘यह दीप अकेला स्नेह भरा / है गर्व भरा मदमाता पर / इसको भी पंक्ति को दे दो।’ मनुष्य के जीवन में आशा-निराशा का खेला लगातार चलता रहता है। यही मानव की नियति भी है शायद। दीपक प्रतीक है मन का, नव ऊर्जा का। महादेवी वर्मा का गीत है - ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल / युग-युग प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल / प्रियतम का पथ आलोकित कर।’ अर्थात समाष्टि के लिए वयष्टि का विसर्जन। जगत को आलोकित करने के लिए स्व का बलिदन करना ही होता है। यही है दीपक का भाव, मनुष्यत्व की परिभाषा। स्वयं को जलाकर, उत्सर्ग कर के ही कुछ हासिल होता है। त्याग ही मुक्ति का मार्ग है।
श्री सुरेन्द्र जैन , कंसल मोटर्स , दिल्ली
ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र अग्नि पर ही हैं। उसे पवित्र माना गया है। प्रकाश या दीपक हमारे अंदर की चेतना, नैतिकता का प्रतीक भी है। जब यह नैतिकता मर जाती है तो दुनिया में विनाश का, युद्ध का, आतंकवाद का अंधेरा अपने पैर पसारने लगता है। अग्नि को प्रथम प्रणम्य माना गया है, प्रथम देवता कहा गया है। अग्नि पंचभूत व्यापी है और धरती, जल, पवन, सब में विद्यमान है। नदी में दीप विसर्जित करने के पीछे भी मूल भाव यही है कि जीवन में गति, निरंतरता बनी रहे। जब गौतम बुद्ध कहते हैं- ‘अप्प दीपो भव'। तो सीधा अर्थ है कि आत्मज्ञान से ही राह मिलेगी। आज पूरा विश्व जिस दौर से गुजर रहा है वहां अंधकार के तत्व हिंसा, आतंक, शोषण, अंध राष्ट्रवाद, धर्माधता बरकरार है। हमें शिक्षा, रोजगार बेहतर स्वास्थ्य के दीपक जलाकर इन अंधेरों को दूर करना होगा। दीपोत्सव विश्व का ऐसा सांस्कृतिक उत्सव है जो रात्रि को भी दिन की तरह कर्मयज्ञ बनाता है। यदि सभ्य होने का अर्थ है शास्त्रों की अंधी होड़, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और एकाधिकार, कमजोर राष्ट्र पर बेवजह आक्रमण तो महापुरुषों के वचन और शास्त्रों से उपजा ज्ञान किस काम का? मनुजता की विजय सर्वे भवन्तु सुखिनः की शाश्वत भावना में है। दीपावली पर दीपों की यह मालिका यही संदेश देती है। आइए कवि गोपालदास नीरज के शब्दों में यह संकल्प दोहराएं- ‘जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।’
प्रयास की रोशनी से ही बाधाओं के अंधेरे दूर होंगे। एक दीप की लौ से कई दीपक जल सकते हैं। एक बुद्ध, महावीर, विवेकानन्द, गांधी के प्रयासों ने करोड़ों लोगों के जीवन में चेतना का उजाला भर दिया। जरूरत है कि कर्म की बाती को परिश्रम के स्नेह में भिगो कर जलाने की, क्योंकि जिसके पास स्नेह नहीं है, प्रेम नहीं वह दूसरों को उल्लास और उजास क्या बांटेगा?