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Avnish Jain | Jun 21, 2022 | Editorial
आसान नहीं होगा
महंगाई पर नियंत्रण
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने जून की अपनी निर्धारित बैठक के बाद जब रेपो रेट में 50 आधार अंकों का इजाफा करने की घोषणा की तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि, लगातार बढ़ती महंगाई और इसे नियंत्रित करने के दबाव के कारण पहले से ही माना जा रहा था कि दरों में बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि, करीब एक माह पहले मौद्रिक नीति समिति ने जब अचानक एक बैठक कर रेपो रेट में 40 आधार अंकों की वृद्धि की थी तो जरूर आश्चर्य हुआ था। समझा गया था कि महंगाई को काबू में रखने का सरकार का कितना दबाव है। इसी दबाव का नतीजा है कि रेपो रेट में 35 दिन में 90 आधार अंकों की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसके बावजूद विशेषज्ञ आश्वस्त नहीं है कि महंगाई पर काबू पा ही लिया जाएगा।
रिजर्व बैंक ने भी 100 आधार अंकों का संशोध्नन करते हुए चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ाकर 6.7 फीसदी कर दिया है। मौद्रिक नीति समिति ने अपने रुख में ‘उदारतापूर्ण’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है, इससे माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक उदार नीति से वापस लौटने पर विचार कर सकता है। देश की अर्थव्यवस्था पर जो ताजा दबाव महसूस किया जा रहा है, उसकी प्रमुख वजह यूक्रेन-रूस युद्ध है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा भी कि इस युद्ध के कारण मांग और आपूर्ति का चक्र प्रभावित हुआ है और बाॅन्ड यील्ड चार साल में पहली बार 7.5 फीसदी पर पहुंच गई है। आने वाले दिनों में इस स्थिति में सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में विकास दर भी प्रभावित हो सकती है। क्योंकि इसके आंकड़ों पर बीते वर्ष की परछाई ही दिखेगी।
सब कुछ ठीक रहा तो अगली छमाही में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। तीन सालों से कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया में भारत की अर्थवयवस्था भी उलझ गई थी। अब इसे उलझन से बाहर निकालने की रफ्तार को यूक्रेन संकट का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया के हालात तो प्रतिकूल हैं ही, यदि महंगाई रोकने के लिए इसी तरह ब्याज दरों को बढ़ाया जाता रहा तो इसका असर जीडीपी पर पड़ना स्वाभाविक है।
उत्पादकता कम होने का दुष्परिणाम कई क्षेत्रों पर पड़ेगा। रोजगार का क्षेत्र भी उन्हीं में एक है। देश में पहले से ही बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। कुल मिलाकर वर्तमान विश्व व्यवस्था में दुनिया के सभी देश एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हैं कि हर कंपन की तरंगे पूरी दुनिया को प्रभावित करती है। अब समय आ गया है कि दुनिया सामूहिकता में सोचना शुरू करे और अपने लाभ के लिए दूसरे की कुर्बानी का पुराना सिद्धान्त त्याग दे। इसी में सबकी भलाई है।