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Avnish Jain | Feb 03, 2022 | Editorial
बढ़ते कदम हमारे
अभी-अभी देश अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना कर चुका है। सात दशकों की यात्रा में हमारे गणतंत्र की चमक दिनोंदिन बढ़ती गई है। विश्व में भारत की पहचान आज एक सक्षम और मजबूत जनतांत्रिक देश की है। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका ही नहीं, यूरोप के भी कई देश जो अपने यहां लोकतंत्र की जड़ जमाने में जुटे हैं, इसके लिए जरूरी सबक विकसित देशों से ज्यादा भारत से सीखना चाहते हैं। हमारी व्यवस्था की सफलता का ही एक पहलू यह है कि बीते 2 वर्षों में हमने जिस प्रकार से कोरोना महामारी का सामना व टीकाकरण किया उसे पूरे विश्व ने देखा है।
इसरो ने हाल के वर्षों में अंतरिक्ष में बड़ी ऊंची उड़ान भरी है और भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है। विज्ञान और टेक्नोलाॅजी के क्षेत्रा में भारत काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है, साथ ही विश्व स्तर पर जारी पर्यावरण रक्षा मुहिम में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। भारत में सोलर एनर्जी का उत्पादन तेजी से बढ़ा है और इस मामले में हम दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर पहुंच गए हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था को पिछले कई वर्षों से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है। ‘‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’’ के मामले में भी पिछले दो-तीन वर्षों में देश ने लंबी छलांगें लगाई हैं। जीएसटी के जरिए देश में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एकरूपता आई है। शुरू में इससे कुछ परेशानियां हुईं लेकिन अभी इस बात को लेकर आम सहमति है कि इससे कारोबार में पारदर्शिता बढ़ी है। लेन-देन की प्रक्रिया में डिजिटलाइजेशन बढ़ना भी एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि, इसका ट्रिगर पाॅइंट बनी नोटबंदी के साथ लोगों की बुरी स्मृतियां भी जुड़ी हैं।
विकास प्रक्रिया में पीछे छूटने वाले वर्गों पर व्यवस्था का फोकस बढ़ा है। किसान की बेहतरी लिए आज सरकार ही नहीं, विपक्ष भी चिंतित है और खेती को फायदेमंद बनाने के रास्ते खोजे जा रहे हैं। महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ी है। हाल में उन्हें मिलिटरी पुलिस में जवान के रूप में शामिल करने का फैसला किया गया है। मामले का दूसरा पहलू यह है कि इध्रन हमारी व्यवस्था में कुछ दरारें उभरती दिखी हैं जो चिंता का विषय है। पहली बार नागरिकता की ऐसी परिभाषा सामने आई है जिसका संवैधनिक मूल्यों के साथ कोई मेल नहीं दिखता। अरसे बाद एक पार्टी के बहुमत वाली केंद्र सरकार के कुछेक फैसलों के प्रतिवाद स्वरूप देश में संघवादी शक्तियां मजबूत होती दिख रही हैं। सरकारी नीतियों के विरोध् में उठती आवाजों को राजद्रोह बताने का चलन बढ़ा है और अल्पसंख्यक समुदायों में भय का एक तत्व भी दिखाई पड़ रहा है। बहरहाल, भारतीय गणतंत्र की यह खूबी है कि वह अपनी कमियों को पहचानकर उन्हें दूर कर लेता रहा है और यह सिलसिला आगे भी चलेगा।