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Agency | Aug 12, 2021 | Social Update
ऐ मेरे वतन के लोगों गीत की यूं हुई रचना
हमारे देश में स्वतंत्राता दिवस और गणतंत्रा दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रमों में देशभक्ति का ज्वार उमड़ता है। इस मौके पर जो गीत-संगीत सुनने में आता है उनमें से एक गीत ‘ए मेरे वतन के लोगों..’ सबकी जुबान पर है। जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था कि यह गीत सुनकर जिसमें भावों की रसधर नहीं फूटती, वह हिंदुस्तानी कहने लायक नहीं है। लोग इस गीत को जितना ‘जन गण मन’ और वंदे मातरम्’ के बराबर ही सम्मान देते है। जब-जब इस गीत की चर्चा होती है तो रामचंद्र द्विवेदी ‘प्रदीप’ से सुनी बातों की यादें ताजा हो जाती हैं।
वे एक बार संगीतकार सी. रामचंद्र जी के घर जा रहे थे जो माहिम (मुम्बई) में कहीं पास ही रहा करते थे। रामचंद्र द्विवेदी के मन में फुटपाथ पर चलते हुए भारत-चीन युद्ध के शहीदोें के लिए कुछ शब्द निकले तो उन्होंने तुरंत ही साथी राहगीर से पेन लेकर एक कागज पर ‘जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी’ लिखकर रख लिया। कुछ दिनों बाद उन्हें दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में शहीदों के लिए होने वाले कार्यक्रम के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव मिला। पंक्तियां तो उनके पास पहले से ही थीं, उन्होंने प्रस्ताव को तुरंत मान लिया। इस गीत के बारे में एक टीवी चैनल पर लता जी ने कहा था, ‘फिल्म का हिस्सा न होने से मुझे लगता था कि इसका प्रभाव सीमित ही होगा पर आज मेरा कोई भी कंसर्ट इस गीत को गाए बिना पूरा नहीं होता। केवल प्रदीप जी ही कहा करते थे कि लता, देखना यह गीत खूब चलेगा लोग हमेशा इसे याद रखेंगे।’।
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रामचंद्र द्विवेदी की पुत्री ने कहा था कि यह सही है कि श्रेय को लेकर फिल्म उद्योग में भी खूब राजनीति हुआ करती है लेकिन मैं इसे राजनीति नहीं कहती बल्कि दुर्भाग्य ही कहूंगी कि जब नेशनल स्टेडियम में वर्ष 1963 में यह गीत लता जी ने डाॅ. राधकृष्णन और पंडित नेहरू की उपस्थिति में सुनाया तो इस गीत के संगीतकार, गायक अन्य पूरी टीम तो थी पर रामचंद्र द्विवेदी वहां नहीं थे। उन्हें कार्यक्रम में बुलाया ही नहीं गया था। अकसर इस अपमान व दुःख की चर्चा परिवार व मित्र -मंडली में होती तो रामचंद्र द्विवेदी कहते, ‘जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।’ दिल्ली में इस कार्यक्रम के बाद नेहरू जी का मुंबई आना हुआ तो उन्होंने इस अमर गीत के गीतकार से मिलने की इच्छा जताई। उन्होंने रामचंद्र द्विवेदी को बुलाकर काफी देर तक बातें की और मुंबई में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में यह गीत सुनाने का आग्रह किया। रामचंद्र द्विवेदी बेहतरीन गायक भी रहे हैं पर उन्होंने विनम्रता से कहा कि वे यह गीत गा तो देंगे लेकिन लता जी की गायकी जैसा प्रभाव शायद नहीं ला पाऐंगे। फिर भी, नेहरू के आग्रह पर उन्होंने यह गीत सुनाया।