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Agency | Oct 28, 2023 | Social Update
धीरे चलने का जीवन में, सड़कों पर, कॅरियर में और कारोबारों में बड़ा महत्त्व होता है। दुनिया की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी टोयोटा के प्रेसीडेंट जो अब चैयरमेन बनेंगे ने पिछले 10-15 सालों में कंपनी में निभाये गये रोल के बारे में हाल ही में कहा कि इन सालों में मेरा काम तेजी से Expand ग्रोथ करने के कारण पनपी समस्याओं की सफाई करने का रहा है। उनके अनुसार उन्हें हर दिन Survive (बने रहने) करने की कोशिशे करने जैसी फीलिंग रहती थी पर स्थितियों और समय के हिसाब से उनके रोल की अहमियत कितनी थी यह अब समझा जा सकता है। सेल्स के हिसाब से दुनिया की नम्बर वन व वेल्यूएशन के हिसाब से जापान की सबसे बड़ी कंपनी टोयोटा ने 20 बिलियन डॉलर का नेट प्रॉफिट पिछले फाइनेंशियल ईयर में कमाया है और ऐसी कंपनी के प्रेसीडेंट रह चुके व्यक्ति ने अपने अनुभवों में सीखने लायक ऐसी बातें कही जो बताती है कि आज कारोबारी दुनिया में Survival (बने रहने ) सबसे बड़ी चिंता का कारण बनता जा रहा है जिसका अहसास बड़े-छोटे यानि हर प्रकार के अधिकतर कारोबारियों को पहली बार इतिहास में सबसे ज्यादा होने लगा है।
100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक व्हीकलों के चलन में आ जाने वाले फ्यूचर पर कम यकीन रखने वाले टोयोटा के प्रेसीडेंट कहते हैं कि हम ऑटो इंडस्ट्री में शताब्दी (Century) में एक बार होने वाले बदलाव से गुजर रहे हैं। इनके अनुसार कंज्यूमर के पास हर तरह की Choice होनी चाहिए जिसको ध्यान में रखकर टोयोटा ने Hybrid-Gas Electric व्हीकल यानि दोनों एनर्जी से चलने वाले वाहन Invent किए। इलेक्ट्रिक व्हीकलों की ओर बदलाव करने में 13 साल लगाने के बाद उनका कहना है अब हमें लगता है कि हमने इसके लिए अपनी नींव मजबूत कर ली है। आजकल कारोबारों में जल्दी-जल्दी बदलाव करना जरूरत से ज्यादा मजबूरी जैसा हो गया है जिसकी जरूरत भले ही न हो पर बाहरी दबाव व यह ट्रेंड इतना हावी होने लगा है कि बदलाव करके वाकई अच्छे रिजल्ट हासिल होंगे। इस बात की गारंटी हुए बिना भी लोग बदलाव करने की दिशा में आगे बढ़ने लगे हैं।
तेज ग्रोथ करने से उपजी समस्याओं का ताजा उदाहरण अडानी ग्रुप है जिसकी कंपनियों पर 2 लाख करोड़ से ज्यादा का उधार है और इसके कारनामों को बताती एक रिपोर्ट के कारण इंवेस्टरों की सबसे चहेती इस ग्रुप की कंपनियों के शेयर बेचने के लिए लोग लाइन लगाकर खड़े हो गए। हम महसूस कर रहे हैं कि नई कंपनियां व स्टार्टअप का लेबल लगाकर तरह-तरह से पैसा जुटाने वाली अधिकतर कंपनियों की जड़े कितनी कमजोर है व इनमें लोगों का विश्वास इतना कम है कि हल्का सा हवा का छोंका भी इन्हें डगमग करने की क्षमता रखता है। अडानी ग्रुप की कहानी 10-15 साल पुरानी ही है जो काफी हद तक ‘उधार’ के बल पर आगे बढ़ी है और ऐसा करने के लिए कितनी Intelligency Expertiseऔर हिम्मत की जरूरत है इसका हिसाब आप लगाइए पर इसमें भी ‘धीरे चलने’ की जगह तेज ग्रोथ करने का फैक्टर महत्वपूर्ण रोल अदा करता हुआ दिखाई देता है।
कई इकोनोमिस्ट व कारोबारों को सलाह देने वाले एक्सपर्ट इस बात पर जोर देने आए है कि कारोबारों को तेज ग्रोथ करने का निर्णय करने से पहले अपनी जड़ों को मजबूत करना चाहिए ताकि ग्रोथ का चक्र कैसा भी चले पर Survival (बने रहने) पर ज्यादा संकट न आ सके । तेज ग्रोथ करने के चक्कर में तकलीफ में आ चुकी टेक कंपनियां व स्टार्टअप इस बात को पुख्ता करते है कि धीरे चलकर मजबूती से मंजिल हासिल करने वाले कारोबारों की संख्या, साख व पहचान इनसे कई गुना ज्यादा है और ‘भरोसे’ के मामले में इनका कोई मुकाबला नहीं है। यह बात ध्यान रखने लायक है कि रेस कोई भी हो उसमें दुर्घटना होने का खतरा व मौके धीरे चलने के मुकाबले हमेशा ज्यादा ही होतेे हैं।