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Avnish Jain | May 13, 2021 | 100 Steps of Success
दूसरों से काम लेना ही सबसे बड़ा काम है
वस्तुतः वर्तमान व्यवस्था में हमारे नब्बे प्रतिशत कार्य दूसरों पर निर्भर करते हैं। ऐसी अवस्था में दूसरों से काम लेने की हमारी क्षमता पर ही हमारी सफलता निर्भर करती है। देखा जाये तो एक-दूसरे के लिए कार्य करना ही हमारा प्रमुख कार्य है। और यदि हम दूसरों से काम लेने की कला में पारंगत हैं तो यही हमारी सबसे बड़ी कला है।
सही है कि आदमी अकेला कुछ भी नहीं कर सकता। परिजन, सहकर्मी, अधीनस्थ, ग्राहक, उपभोक्ता, व्यापारी और आमजन के सहयोग के बिना आदमी जितना व्यवहार कुशल होता है। उसे हर सतह पर हर क्षण किसी न किसी का सहयोग लेना ही पड़ता है। आदमी का जितना कुशल व्यवहार होता है उतना ही सफल हो पाता है।
जिसे हर व्यक्ति और हर शक्ति से काम लेने की कला आती है, जिसे दिलों की तख्ती पर अपनत्व की पंक्ति लिखने की कला आती है, लोगों की संवेदनायें उसके पीछे दौड़ी चली आती हंै। इसलिये हर व्यक्ति, हर शक्ति, हर सत्ता, और हर दिल से जुड़ने की कला विकसित कीजिये, लोगों से काम लेना आसान हो जायेगा।
यह महत्वपूर्ण नहीं कि आप खुद कितना वजन उठा सकते हैं, महत्वपूर्ण तो यह है कि आप दूसरों से कितना वजन उठवा सकते हैं। लोगों की मदद से समूचा पहाड़ भी उठा सकते हैं। याद रखें सीमित समय में असीमित कार्य नहीं कर सकते किन्तु जब आप दूसरे लोगों को अपने कार्य से जोड़ने में कामयाब हो जाते हैं, तब आपके पास अपार समय होता है।
यह दुनिया इच्छुक लोगों से भरी पड़ी है। कुछ काम करने के इच्छुक होते हैं और कुछ काम करवाने के। पहली श्रेणी के लोगों का काम आसान है, वहीं दूसरी श्रेणी के लोगों का काम इतना आसान नहीं है। जो लोग दूसरों से काम लेने में दक्ष हो जाते हैं, वे ही सफलतम व्यक्ति हो जाते हैं।
यह भी सही है कि जब आप खुद काम करेंगे, तब ही दूसरे भी काम करेंगे। जिस निष्ठा, आस्था और विश्वास केे साथ आप काम करेंगे, उतने ही परिश्रम एवं विश्वास के साथ दूसरे भी काम करेंगे। जब आप दूसरों का सहयोग नहीं करेंगे, तब दूसरों से सहयोग की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। इसलिये पहले खुद काम करें, दूसरों का भरपूर सहयोग प्राप्त करें।
अपने परिवार को ही लीजिए। परिवार के हर सदस्य को अपना कार्य बखूबी करना पड़ता है। तथा एक दूसरे का आदर भी करना पड़ता है। जब हर सदस्य परिवार के हर कार्य को अपना कार्य समझ कर करता है, तब हर सदस्य महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी तरह आपसे जुड़ने वाले भी आपके परिवार के ही सदस्य हो जाते हैं, इसलिये हर सहयोगी को महत्व दीजिये। कुछ देकर ही किसी से कुछ लिया जा सकता है। अपने अधीनस्थ को पर्याप्त महत्व दें, समय-समय पर उसके कार्यों की प्रशंसा करें। साथ ही अपने सहकर्मियों एवं वरिष्ठ महानुभावों का पूरा सम्मान करें। परस्पर सम्यक् समन्वय बनाये रखें, एक-दूसरे को पूरा सम्मान दें। सदा मर्यादा पूर्ण व्यवहार करें। सबकी इच्छाओं का आदर करें, तब आपके सहयोगी और आपके वरिष्ठ भी अपना काम अच्छी तरह से सम्पादित करेंगे और आपके सहयोग के लिए सदा तैयार रहेंगे।
सुकरात उवाच
सुकरात अपने शिष्यों से अक्सर कहा करते थे-जो अनजान है और अपने को जानकार समझता है, उससे बचकर रहना। जो अनजान है और अपने आपको अनजान ही समझता है, उसे सीखने का अधिकार है। उसे सिखाना। जो जानकार तो है किन्तु अपनी जानकारी के प्रति शंकालु है, उसे जगाना। जो जानकार है और अपनी जानकारी के प्रति आस्थावान है, ऐसे व्यक्ति के पीछे चलना। अर्थात् हमंे किसी से काम लेने से पूर्व उसकी सामान्य जानकारी के सम्बन्ध में जानना होगा। उसे चार श्रेणियों में से किसी एक श्रेणी में रखना होगा, तब उससे काम लेना काफी आसान हो जायेगाा।