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Agency | Mar 27, 2021 | 100 Steps of Success
बिना लक्ष्य कदम बढ़ाना धूल में लट्ठ चलाना है
विश्व की प्रत्येक वस्तु के साथ उसका कोई न कोई प्रयोजन भी अवश्य जुड़ा हुआ होता है। इसी तरह हमारा जन्म भी किसी पूर्व निर्धारित प्रयोजनार्थ ही हुआ है और जहां प्रयोजन, वहां लक्ष्य। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्रयोजन को पैरों में बांधना ही पड़ेगा। चलने से पहले लक्ष्य तो निर्धारित करना ही पड़ेगा, वरना हमारा चलना ही व्यर्थ हो जायेगा। यदि हम हर कार्य लक्ष्यानुसार ही करते हैं तो हमें एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोना पड़ेगा। यदि हम हर क्षण का सदुपयोग करते हैं तो हमें लक्ष्य की प्राप्ति के लिए चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं होगी। यदि हम किसी लक्ष्य को सामने रख कर ही चलेंगे तो हमारी यात्रा निरर्थक नहीं होगी। चलने का कोई मकसद हो तो सफलता मिलना निश्चित ही है।
यह कतई अपेक्षित नहीं है कि हर व्यक्ति अपने लक्ष्य में कामयाब हो, किन्तु कामयाब होने के लिए किसी न किसी लक्ष्य का होना तो अपेक्षित ही है। यह अपेक्षित नहीं है कि हर व्यक्ति कोई बड़ा लक्ष्य लेकर ही चले किन्तु बड़े से बड़े लक्ष्य तक पहुँचने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य प्राप्त करते चलना अपेक्षित है तब कुछ और बड़े लक्ष्य स्वतः ही सामने आ जाते हैं। यही क्रम जिन्दगी भर चलता है। जो इस क्रम को भंग कर देता है, वह हर दौड़ में पिछड़ जाता है।
आप सबसे आगे निकलने का सपना तो पाल सकते हो किन्तु इसे अपना लक्ष्य नहीं बना सकते। सबसे आगे कोई निकल भी नहीं सकता। सबको अपने ही ट्रेक में दौड़ना पड़ता है। अपने ट्रेक में आप जहाँ हैं, वही स्थान आपके लिए महत्वपूर्ण है। यहां मृत्यु के अतिरिक्त कुछ भी निश्चित नहीं किन्तु मृत्यु को लक्ष्य बनाया नहीं जा सकता। जन्म और मृत्यु तो जिन्दगी के दो छोर हैं। दोनों के बीच ही हमें बहुत कुछ करना होता है। यदि हम सही समय पर सही लक्ष्य निर्धारित करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करते चलेंगे तो जन्म और मृत्यु को सार्थक कर लेंगे।
आप शिक्षार्थी, शिक्षक, जन सेवक, व्यवसायी, उद्यमी, निर्माता, विक्रेता, कृषक, श्रमिक कुछ भी हों, आपको कोई न कोई लक्ष्य तो लेकर ही चलना पड़ेगा और हर क्षण लक्ष्य की दिशा में सतर्क रहना पड़ेगा। बिना लक्ष्य तो आप कहीं पहुँच भी नहीं पायेंगे। अलग-अलग व्यक्तियों के अलग-अलग लक्ष्य होते है। हर व्यक्ति अपनी दक्षता और क्षमता के अनुसार ही अपने लक्ष्यों का निर्धारण करता है इसलिए हर व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकता है। आरम्भ में आप अपना लक्ष्य छोटा रख सकते हैं। जैसे-जैसे लक्ष्य के नजदीक पहुँचते जायें, लक्ष्य को बढ़ाते चलें। आप अपने लिए दैनिक लक्ष्य भी निर्धारित कर सकते हैं। जब दैनिक लक्ष्यों की पूर्ति दैनिक रूप से होने लगेगी, तब आपके उत्साह और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती चली जायेगी। और आपकी क्षमता और कार्य कुशलता बढ़ने लगेगी। तब आप निरन्तर सफलता की ओर बढ़ते चले जायेंगे।
परमात्मा कभी बेचैन नहीं रहता। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे कभी बेचैन नहीं रहते पर अफसोस कि आदमाी सदैव बेचैन रहता है। कारण की वह कभी एक लक्ष्य लेकर नहीं चलता। लक्ष्य बदलता रहता है। एक लक्ष्य की पूर्ति से पहले ही दूसरा, तीसरा लक्ष्य खड़ा कर देता है। आदमी के तमाम कष्टों का कारण भी यही है इसलिए बेचैनी से उबरने के लिए सुखी रहने के लिए जरूरी है कि निश्चित लक्ष्य के साथ ही आगे बढ़ा जाये।
दृष्टान्त: गरीब किसान का एक बच्चा किसी तरह स्कूल जाने लगा। स्कूल के अध्यापक के अलावा आस-पास कोई भी दसवीं पास नहीं था, सो उसने दसवीं पास करने को अपना लक्ष्य बना लिया। अपनी कक्षा में प्रथम आता था किन्तु आर्थिक समस्यायें बढ़ रही थी। उसने बीच-बीच में मजदूरी भी की। कुछ सरकारी छात्रवृत्ति भी मिलने लगी। कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगा। नवीं कक्षा में पढ़ते हुए दसवीं कक्षा के छात्रों को घर जाकर ट्यूशन पढ़ता था और अन्ततः अपने लक्ष्य में कामयाब हुआ। प्रथम श्रेणी में दसवीं उत्तीर्ण की और दसवीं करते ही बी.ए. करने का लक्ष्य बना लिया। बी.ए. करते ही उसने अफसर बनने का लक्ष्य बना लिया। छोटी सी नौकरी करते हुए उसने अच्छी तैयारी की और प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गया। यदि वह कोई लक्ष्य लेकर नहीं चलता तो कहीं भी नहीं पहुँच पाता।