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दूसरों की सफलताओं से ईर्ष्या नहीं बल्कि कुछ सीखने की कोशिश करें

अगर हम किसी का दुर्भाग्य सोचते हैं तो यह सिर्फ और सिर्फ हमारा ही दुर्भाग्य होगा। अगर हम किसी का सौभग्य सोचते हैं तो यह हमारा भी सौभाग्य होगा। ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति में स्वयं की कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती बल्कि वह तो यह चाहता है कि दूसरा जल्दी से गिर कर नीचे आ जाये। ईर्ष्या करने वाला किसी दूसरे का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता किन्तु अपना नुकसान अवश्य कर लेता है।

जहां चन्दन महकता है, वहां दूसरे वृक्षों में भी सुगन्ध आ ही जाती है। जहां गुलाब खिलता है, वहां दूसरे फूलों से भी महक आ ही जाती है। जब दूसरों की सफल कल्पनाओं को अपने-अपने मूल ज्ञान से जोड़ा जाता है, तब हमारी सफलता के भी पंख लग जाते हैं इसलिए दूसरों की सुगन्ध को दुर्गन्ध कह कर अपनी दुर्गन्ध न फैलायें।

हकीकत तो यह है कि अधिकांश व्यक्ति एक-दूसरे को जलाने के लिए ही हर वक्त दौड़-धूप करते रहते हैं किन्तु जलने या न जलने का विकल्प तो आपके पास ही है अपने विकल्पों का सदैव सदुपयोग करें जलना व जलाना छोड़ें अपनी गति से निर्विकार रूप से निरन्तर आगे बढ़ते रहें। तब आपको न जलने की जरूरत पड़ेगी और न जलाने की।

दूसरों से जलन रखने से ईर्ष्या, ईर्ष्या से हीन भावना और हीन भावना से खुद के प्रति दुर्भावना पैदा होती है जिससे आपकी कार्य क्षमता अवश्य प्रभावित होती है। ईर्ष्या से प्रगति रुक जाती है। जलने वाला जलता ही रह जाता है और जगत आगे बढ़ जाता है इसलिए जलो, मगर दीपक की तरह।

हम हर सफल और असफल व्यक्तियों और हर परिस्थिति से हर क्षण कुछ न कुछ सीख सकते हैं। संसार सफल व्यक्तियों के कारण ही निरन्तर आगे बढ़ रहा है। क्या हमारे ईर्ष्या करने से सफल व्यक्ति परिश्रम करना छोड़ देंगे? तो फिर हमें जलने की कहां आवश्यकता है। मजा तो तब है, जब हम ईर्ष्या की बजाय सीखना जारी रखें।

यदि आप किसी की प्रशंसा करके उससे कुछ सीखना चाहेंगे तो बहुत कुछ सीख जायेंगे। यदि आप जहर से भरे होकर कुछ सीखना चाहेंगे तो कुछ भी नहीं सीख पायेंगे। यह मत भूलिए कि प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी की प्ररेणा अवश्य होती है। और प्ररेणा प्रशंसा से मिलती है, ईर्ष्या से नहीं।

जो खुद कुछ नहीं कर सकता, वह सदा दूसरे की बुराई करने में ही लगा रहता है और धीरे-धीरे यह उसका काम ही हो जाता है, क्योंकि उसे यही सबसे आसान लगता है। बुराई अक्सर पीठ पीछे की जाती है। बुराई न अस्त्र है, न शस्त्र  लेकिन जो बुराई को ही अपना अस्त्र समझ लेता है, उसका अमूल्य जीवन मूल्य-हीन हो जाता है इसलिए अपने इकलौते और अमूल्य जीवन को यूं ही व्यर्थ मत करिए।

यदि आप अपने अच्छे विचारों को परस्पर बदलेंगे तो दोनों पक्षों के पास दो गुने विचार को जायेंगे इसलिए अपने अच्छे विचारों में अभिवृद्धि करते रहें। हर व्यक्ति के व्यक्तिव एवं कृतत्व का सम्मान करें और अपने व्यवसाय को नये आयाम प्रदान करें। 

सफल व्यक्ति को उसकी सफलता पर बधाई दें किन्तु आपके शब्दों में ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। जब आप शुद्ध, निष्पक्ष और सहज भाव से किसी को बधाई दंगे, मन से उसकी प्रशंसा करेंगे तो दूसरे भी बदले में ऐसा ही करेंगे। आपकी मदद के लिए सदा तैयार रहेंगे। बुराई, घृणा, ईर्ष्या, बेइमानी तो ब्याज सहित लौट कर आती है। इनसे बचें, इनसे नकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

दृष्टान्त 

किसी शिष्य द्वारा अरस्तु से पूछा गया कि सफलता का रहस्य क्या है? इस पर दार्शनिक अरस्तु ने पांच सूत्र बताये

  • अपना दायरा बढ़ाओ और संकीर्ण स्वार्थपरता से ऊपर उठकर सामाजिक बनो।
  • आज की उपलब्धियों पर संतोष करो और कल की योजनाओं के लिए आशान्वित रहो।
  • दूसरों के दोष ढूंढ़ने में अपनी शक्ति खर्च मत करो वरन् दूसरों से कुछ न कुछ सीखते हुए आगे बढ़ते रहो।
  • कठिनाइयों को देखकर चिन्तित होने की बजाय धैर्य और साहस के साथ आगे बढ़ते रहो। कठिनाइयों का निराकरण स्वतः ही होता चला जायेगा।

हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाई खोजो और उससे कुछ न कुछ सीखते हुए अपने ज्ञान एवं अनुभव को बढ़ाओ अर्थात् जब आप दूसरों से ईर्ष्या करना छोड़ देंगे, तब ही किसी से कुछ सीख पायेंगे। ईर्ष्या तो कभी न बुझने वाली आग है, जो ईर्ष्या करने वाले को ही जलाती है। प्रशंसा तो कभी न बुझने वाली प्यास है, जो दोनों ही पक्षों को लाभ पहुंचाती है।

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